नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। कोरोना वायरस के प्रसार को कम करने के लिए सरकार ने लॉकडाउन लागू किया और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन करने की अपील की, लेकिन इंसान है कि समझता ही नहीं।
लोग लॉकडाउन के बीच भी सड़कों पर कभी जाम लगाते, लाइनों में लगे देखे जाते हैं। इससे बेहतर जानवर हैं जो इस बात को समझते हैं कि नजदीकी से बीमारी फैलती है। ये सुनने में आपको अटपटा लगेगा लेकिन ये सच है। इस बारे में वैज्ञानिकों का भी कहना है कि जानवर डिस्टेंस मेंटेन करते हैं। उन्हें पता है कि साथ रहने से क्या नुकसान हो सकता है।
शोध ने बताया सच
इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने जानवरों में सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर कुछ जरुरी साक्ष्य इकट्टे किए हैं। हमने देखा है कि जानवर कुछ छोटे जीवाणुओं को बढ़ने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हैं।
इससे हम यह भी जान पाए हैं कि जानवर अपने शरीर को लेकर काफी सेंसटिव होते हैं और शायद यही कारण है कि जानवर समूह में रहते हैं लेकिन दूसरे समूह से सोशल डिस्टेंसिंग बना कर रखते हैं
बंदरों पर शोध
इस बारे में एक शोध किया गया है जो जर्नल एनिमल बिहेवियर में प्रकाशित किया गया है। ये शोध घाना में बोआबेंग और फ़िएमा गांवों के पास बसे एक छोटे से जंगल में रहने वाले 45 मादा कोलोबस बंदरों पर किया गया है।
इस शोध के लिए बंदरों की आंतों में मौजूद पाचन क्रिया में मदद करने वाले सूक्ष्मजीवों को कई मापदंडो पर परखा। जिसमे सोशल ग्रुपिंग भी शामिल था।
इंसानों में बीमारी
इस शोध से वैज्ञानिकों को बंदरों के सोशल सोशल माइक्रोबियल ट्रांसमिशन के बारे में पता लगेगा जिससे हम इंसानों में बीमारियां किस तरफ से फैलती हैं ये पता लगा सकेंगे। साथ ही यह भी कि इंसानों को बिमारियों से बचाने में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करना फायदेमंद साबित हो सकता है।
समझने में मदद मिलेगी
शोधकर्ताओं का मानना है कि बंदरों और इंसानों में कई बड़ी समानताएं हैं और इनके शोध से हमें ये जानने में मदद मिलेगी कि कोरोना और भविष्य में आने वाली कोई भी महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंस मेंटेन करने से बीमारी कैसे कंट्रोल पाया जा सकता है।
एक टिप्पणी भेजें