नई दिल्ली। बिहार के सियासी गलियारे में उथल-पुथल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बीच नजदीकियां बढऩे और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विधानसभा से प्रस्ताव पारित होने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सकते में हैं। सूत्रों के मुताबिक, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने से पहले उपमुख्यमंत्री व भाजपा नेता सुशील मोदी से संपर्क किया था।
इसके अलावा ना तो इसकी जानकारी प्रदेश के किसी नेता को थी और ना ही इस बाबत आलाकमान को सूचना दी गई थी। इस बाबत बिहार भाजपा के नेताओं में भारी बैचेनी है। बिहार भाजपा के एक बड़े नेता ने आईएएनएस को बताया कि पहले गृह मंत्री अमित शाह और अभी हाल में भाजपा अध्य्क्ष जे.पी. नड्डा ने पटना में ऐलान कर दिया कि बिहार में गठबंधन के नेता नीतीश कुमार हैं, लिहाजा जो भी रुख तय किया गया है, वो दोनों दलों का साझा रुख है।
लेकिन भाजपा नेता ने बताया कि जिस तरीके सदन से एनआरसी को लेकर बिहार विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया गया, वो चौंकाने वाला है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मंगलवार को जिस तरीके से एनआरसी पर सदन में प्रस्ताव पेश किया, उसके बाद तेजस्वी अचानक मुख्यमंत्री से मिलने चले गए, फिर उस प्रस्ताव को सदन में चर्चा के लिए स्वीकार कर लिया गया।
आनन-फानन में बिहार में एनआरसी लागू नहीं होने का प्रस्ताव भी पास करा लिया गया। बुधवार को भी नीतीश-तेजस्वी की मुलाकात हुई। मंगलवार को तेजस्वी की पहल पर दोनों नेता मिले, तो बुधवार को नीतीश ने इसकी पहल की। विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में दोनों नेताओं ने साथ-साथ बैठकर चाय भी पी थी। तेजी से हुए इन घटनाक्रमों से भाजपा असहज है। ध्यान रहे कि नीतीश और तेजस्वी के इस कदम से राजग के भीतर भाजपा जहां चारोखाने चित्त हो गई है, वहीं महागठबंधन में भी राजद के अलावा बाकी तमाम सहयोगियों की बोलती बंद हो गई है।
तेजस्वी एनआरसी पर प्रस्ताव सदन से पास कराकर यह बताने में कामयाब रहे कि उन्होंने अल्पसंख्यकों की लड़ाई लड़ी। भले ही कन्हैया कुमार, पप्पू यादव, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा सीएए-एनआरसी के खिलाफ आंदोलन चला रहे हों, लेकिन तेजस्वी ने एक झटके में महागठबंधन के बाकी दल के नेताओं से मुद्दा ही छीन लिया है। कन्हैया कुमार ने पूरे बिहार में घूम-घूम कर एनआरसी-सीएए को लेकर यात्रा निकाली थी।
कन्हैया की सभा में भारी भीड़ उमड़ रही थी, जिससे तेजस्वी परेशान थे। कन्हैया इसी मुद्दे को लेकर 27 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में बड़ी रैली कर रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी ने मिलकर दोनों गठबंधन के घटक दलों का तो शिकार कर ही लिया। उसके अलावा कन्हैया, प्रशांत किशोर सरीखे नेताओं के अभियान की भी हवा निकाल दी।
तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की इस मुलाकात का रिजल्ट जहां भाजपा के संकल्प के खात्मे के साथ हुआ, वहीं बिहार की राजनीति में यह स्थापित हो गया कि इस सूबे में आज भी सत्तापक्ष का चेहरा नीतीश कुमार हैं और विपक्ष का चेहरा तेजस्वी यादव हैं। नीतीश ने सत्ता में भागीदार भाजपा के संकल्प को ही खत्म कर दिया और उसके नेता देखते रह गए।
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