शाहीन बाग प्रदर्शन में शिशु की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान












नई दिल्ली। विरोध प्रदर्शनों में बच्चों और शिशुओं की संलिप्तता रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है। 30 जनवरी की रात चार माह के एक शिशु की शाहीन बाग से लौटने के बाद मौत हो गई थी जहां उसके माता-पिता नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में उसे लेकर गए थे।


यह मामला इसलिए अहम है क्योंकि हाल ही में राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार-2019 से सम्मानित 12 वर्षीय जेन गुणरतन सदावर्ते ने प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) एसए बोबडे को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने विरोध प्रदर्शनों में बच्चों की भागीदारी को क्रूरता बताते हुए इसे रोकने के निर्देश दिए जाने की मांग की थी। जेन ने अपने पत्र में लिखा कि शिशु के माता-पिता और शाहीन बाग में सीएए विरोध प्रदर्शनों के आयोजनकर्ता बच्चे के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई।


मुंबई में कक्षा सात की छात्रा जेन ने यह आरोप भी लगाया कि शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों में शिशु और बच्चे भी शामिल हैं जहां वे ऐसे वातावरण के संपर्क में आते हैं जो उनके लिए अनुकूल नहीं है। लिहाजा यह उनके अधिकारों का हनन है। पत्र के मुताबिक, 'शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों में महिलाएं, वरिष्ठ नागरिक, नवजात और बच्चे शामिल हैं। इसमें इस बात की अनदेखी की जा रही है कि नवजातों को काफी ध्यान और देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि वे अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर सकते। इसमें बच्चों के लिए प्रतिकूल हालात की अनदेखी भी की जा रही है। उन्हें विरोध स्थल पर ले जाया जा रहा है जो उनके बाल अधिकारों और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।'


यह भी आरोप लगाया गया है कि पुलिस बच्चों को ऐसे विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने से रोकने में विफल रही जो उनकी सेहत के लिए नुकसानदायक है। पत्र में इस बात पर आश्चर्य जताया गया है कि चार माह के शिशु के मृत्यु प्रमाणपत्र में मौत का कारण भी नहीं बताया गया है। ज्ञात हो कि परेल क्रिस्टल टावर में लगी आग के दौरान 17 लोगों को सुरक्षित रास्ता दिखाने के लिए जेन को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्रदान किया गया है। 












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