नई दिल्ली/ अक्षर सत्ता। राजनीति सभी दौर में एक समान ही रहती है,भले ही दशकों बीत जाने के वाबजूद सत्ता का समीकरण भले ही बदल जाए। ऐसा ही एक वाकया आजकल चर्चा में है- मध्यप्रदेश के महाराज-ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिये।अब तो यह तय हो गया है कि सिंधिया को जब कांग्रेस में युवराज से लेकर कमलनाथ ने तरजीह नहीं दी भारी कीमत पार्टी को देनी पड़ी।
जब सिंधिया ने छोड़ी पार्टी तो...
न सिर्फ कांग्रेस के हाथ से एमपी सरकार से हाथ धोना पड़ा बल्कि राज्य के कद्दावर नेता सिंधिया ने भी पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया। लेकिन जैसे जल बिन मछली नहीं रह सकती है वैसे माना जाता है कि देश के राजघराना परिवार भी हमेशा पॉवर में रहना पसंद करते है। इसमें कोई नई बात नहीं है।
तख्तापलट के हीरो सिंधिया
अब जबकि राज्य में तख्तापलट हो चुका है और राज्य में फिर से शिवराज की सत्ता में वापसी हो चुकी है तो ऐसे में सिंधिया की अनदेखी का तो बीजेपी फिलहाल सपने में भी नहीं सोच सकती है। सिंधिया ने अपने नजदीकी तुलसी सिलावट को कमलनाथ सरकार में डिप्टी सीएम बनाने की आवाज बुलंद की तो महाराज को खामोश रहने को कहा। फिर महाराज ने बगावत शुरु करते हुए कमलनाथ को राज्य से किये वायदे नहीं पूरे होने पर सड़क पर उतरने की धमकी दी तो कमलनाथ ने बड़ी चूक कर दी। उन्होंने सिंधिया को कहा-देरी किस बात की हो रही है,उतर जाएं। और दुनिया जानती है कि यहीं से कमलनाथ सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो गई। हालांकि कमलनाथ ने भी कई पैंतरे चले लेकिन बीजेपी के हाथ होने से सिंधिया का सभी दांव सफल रहा।
लेकिन सवाल उठता है कि मौजूदा समय में क्या शिवराज जब मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे तो क्या सिंधिया के चहेते तुलसी सिलावट को डिप्टी सीएम बनाएंगे या नहीं? वैसे सिधिया की हर बात मानने को मजबूर शिवराज सिंह ने सत्ता संभालते ही सिंधिया के सभी अफसरों को उनके मांग पर जिलों में नियुक्ति कर दिये है। उन पर चल रहे जमीन घोटाला केस को भी रफा-दफा कर दिया है। लेकिन सिंधियाइतने पर नहीं खुश हो सकते है। वैसे शिवराज जब भी मंत्रिमंडल के विस्तार करेंगे तो सिंधिया की जबरदस्त चलेगी। इसमें कोई दो राय नहीं है।
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