इस मंदिर में देशभर से इकट्ठा होते हैं किन्नर

 



नई दिल्ली/ अक्षर सत्ता। देश में किन्नरों का रहन-सहन सभी के लिए रहस्य रहा है, जिसमें एक बात यह भी है कि यह लोग अपने कुलदेवी को मानते हैं। जिनका नाम बहुचरा माता है जिनका मंदिर गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित है। बहुचरा माता प्रतिस्थापित है किन्नर इन्हें अर्धनारीश्वर के रूप में पूजते हैं। मंदिर में हर रोज बहुत सारे मुर्गे घूमते रहते हैं इसलिए इसे मुर्गो वाली देवी भी कहा जाता है। इस मंदिर की मान्यता इतनी है कि यहां लगभग रोज देशभर से किन्नर पूजा करने के लिए आते हैं। इसके साथ ही वहां आसपास के लोग भी बहुचरा माता में काफी आस्था रखते हैं। माना जाता है कि बहुचरा माता ने एक साथ बहुत सारे राक्षसों का संहार किया था जिसके बाद इन्हें बहुचरा नाम दिया गया।


मंदिर में मुर्गों के होने की है कहानी
इस मंदिर में बहुत सारे मुर्गे घूमते रहते हैं इसे लेकर वहां आसपास के पुराने लोग एक कहानी कहते हैं जो उन्होंने अपने पुरखों से सुनी है। बताया जाता है कि अल्लाउद्दीन खिलजी जब पाटन जीत कर यहां पहुंचा था तो सबसे पहले उसकी नजर इस मंदिर के वैभव पर पड़ी थी. इस समृद्ध मंदिर को देखकर खिलजी के मन में इसे लूटने की इच्छा जागी। 


खिलजी अपने सारे सैनिकों को लेकर मंदिर पर चढ़ने ही वाला था कि सैनिकों को पूरे प्रांगण में बहुत से मुर्गे नजर आए, कई दिनों से भूखे सैनिकों ने इन्हें पकड़ा और खा लिया और वही सो गए, लेकिन उसमें से एक मुर्गा बचा रह गया। जब उसने सुबह बाघ देनी शुरू की तो उसके साथ-साथ सैनिकों के पेट से भी बाकी आवाजें आने लगी और इसके साथ ही एकाएक बहुत सारे सैनिक एक साथ मरने लगे। अपने सैनिकों की ये हालत देखकर खिलजी बाकी सेना के साथ वहां से भाग गया। जिसके बाद मंदिर सुरक्षित रह गया तब से मुर्गे वाली माता का मंदिर भी इसे कहते हैं।


इसलिए इस मंदिर में आते हैं किन्नर
इस मंदिर में किन्नरों के आने की भी कई कहानियां हैं लेकिन इसमें सबसे प्रचलित है वह किन्नर समुदाय के लोग अपने यहां शामिल हुए नए सदस्यों को सुनाते हैं। उनका कहना है कि गुजरात के राजा की कोई संतान नहीं थी तब बहुचरा माता की पूजा के बाद राजा को पुत्र हुआ लेकिन वह नपुंसक था, पुत्र के खूब पूजा पाठ के बाद उसे पूरा शरीर मिल गया, लेकिन तब तक वह देवी का उपासक बन चुका था, उसने राजपाट छोड़कर बहुचरा माता का भक्त बन गया। इसके बाद से ही किन्नर समुदाय के लोग इन्हीं देवी को मानने लगे। ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा से अगले जन्म में किन्नर पूरे शरीर के साथ जन्म लेंगे।


किन्नरों के अलावा यहां पर जो लोग निसंतान होते हैं वह भी अपनी मांग लेकर आते हैं और मन्नत पूरी होने पर वह शिशु के बाल यहां छोड़ जाते हैं। इसके साथ ही मंदिर में मुर्गो के दान का भी प्रचलन है।  


दक्षिण में किन्नरों के हैं अलग भगवान
देश में किन्नरों की दक्षिण भारत में अलग पूजा आस्था के तरीके हैं जैसे उत्तरी हिस्से में बहुचरा माता को माना जाता है वैसे ही दक्षिण में अरावन भगवान की मान्यता है। हर साल अप्रैल-मई में कूवागम गांव में अरावली मंदिर में 18 दिनों का पर्व होता है जिसमें हजारों की संख्या में किन्नर इकट्ठा होते हैं। दक्षिण में किन्नरों में शादी की भी प्रथा है। जिसके पीछे एक पौराणिक कथा है।


माना जाता है कि अरावन भगवान महाभारत काल में अर्जुन और नागा राजकुमारी के पुत्र थे। महाभारत की कहानी के अनुसार युद्ध के वक्त देवी काली को खुश करना होता है उन्हें खुश करने के लिए अपनी बलि देने को तैयार हो जाते हैं लेकिन उनकी शर्त होती है कि वे अविवाहित नहीं मरना चाहते, जिसमें शादी के अगले ही पल बेटी के विधवा होने के डर से कोई राजा ने अपनी बेटी से उनकी शादी करने से मना कर दिया। ऐसे में श्रीकृष्ण मोहिनी रूप धरकर अरावन से शादी कर लेते हैं अगली सुबह अरावन की मृत्यु के बाद कृष्ण ने विधवा की तरह विलाप किया था।


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