एम्स निदेशक भी बोले- कोरोना संग जीना होगा...


नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 3 मई के बाद भी लॉकडाउन बढ़ाने पर साफ कर चुके हैं कि कोरोना संक्रमण दवाई इजाद होने तक खत्म नहीं होने वाला है और ऐसे में हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी। इसके साथ ही केजरीवाल यह भी साफ कर चुके हैं कि जनता को पूरी ऐहतियात के साथ काम पर जुटना होगा। आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करना होगा। लेकिन, आज यही बात एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी कही है। 


उन्होंने हेल्थ सिस्टम सुधारने और कोरोना संक्ररण पर काबू पाने के लिए और बेहतर कदम उठाने पर जोर दिया। इसके साथ ही गुलेरिया ने बतौर हेल्थ एक्सपर्ट चेतावनी भी जारी की है। उन्होंने साफ कहा है कि कोरोना संक्रमण का चरम अभी आना बाकी है, जो जून के महीने में देखने को मिल सकता है। साफ है कि यह चेतावनी केंद्र और राज्य सरकारों के लिए काफी मायने रखती है। 


एम्स डायरेक्टर ने कहा कि कोरोना के मामले जून पर पीक पर जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना बीमारी एकदम खत्म हो जाएगा, ऐसा फिलहाल संभव नहीं है। दवाई आने तक हमें कोरोना के साथ जिंदगी जीने के लिए तैयार रहना होगा। इसके बाद ऐहतियात के साथ धीरे-धीरे कोरोना मामलों में कमी देखने को मिल सकती है। पूरे देशभर में कोरोना संक्रमण का कहर फिलहाल तो थमने वाला नहीं है। 


उन्होंने कहा कि लॉकडाउन से पॉजिटिव मामलों में कमी तो आई है, लेकिन रोजाना मरीजों की संख्या में इजाफा भी हो रहा है। अब तक 50,000 से ज्यादा मरीज भारत में हो चुके हैं। लेकिन, जिस तरह से जून में कोरोना मामले पीक पर होने की आशंका है, उससे लॉकडाउन भी और बढ़ने की संभावना दिख रही है। तेलंगाना में तो 30 मई तक लॉकडाउन बढ़ा दिया गया है। 


एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए गुलेरिया ने कहा कि कोरोना के ट्रेंड इशारा कर रहे हैं कि जून का महीना हम पर भारी पड़ सकता है। इसके लिए हमें तैयार रहना होगा। कोरोना के साथ जीते हुए अपनी तैयारी को पूरा करना होगा। उन्होंने कहा कि अस्पताल के डॉक्टर्स को इसके प्रशिक्षण दिए गए हैं। पीपीई किट्स, वेंटिलेटर और आवश्यक मेडिकल डिवाइस के इंतजाम भी बढ़ाए जा रहे हैं। 


गुलेरिया ने कहा कि कोरोना वायरस को कंट्रोल करने लिए शोध पर जोर देने की जरुरत है। इस संक्रमण से निपटने के लिए प्लाज्मा थेरपी और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा इस्तेमाल तो हो रही है, लेकिन इसे आखिरी इलाज नहीं माना जा सकता है। इस दिशा में विदेशों में शोध हो रहे हैं, लेकिन अपने देश में भी शोध को तेज करना होगा। 


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