जेनेवा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देश मंगलवार को इस आशय की जांच के लिए राजी हो गए कि कोरोना वायरस से उपजी महामारी से निपटने को लेकर संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी की भूमिका कैसी रही। डब्ल्यूएचओ कोरोना वायरस को लेकर दुनिया को आगाह करने के मामले में पहले से अमेरिका के निशाने पर है और अब जिस तरह उसकी भूमिका की जांच को लेकर प्रस्ताव पारित हो गया उससे उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
डब्ल्यूएचओ की वार्षिक महासभा में पहली बार सदस्य देशों ने वर्चुअल तौर पर भाग लिया। इसमें सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि इस संकट से निपटने के लिए साझा प्रयास की जरूरत है। यूरोपीय संघ की ओर से रखे गए प्रस्ताव के मुताबिक, कोरोना महामारी के प्रति अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया के निष्पक्ष, स्वतंत्र और व्यापक आकलन की आवश्यकता है। कोरोना के कारण दुनिया भर में तीन लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और करीब पचास लाख लोग संक्रमित हैं।
प्रस्ताव में कहा गया है कि जांच-पड़ताल में यह बिंदु भी शामिल किया जाना चाहिए कि डब्ल्यूएचओ ने क्या कदम उठाए और उनका समय क्या ठीक था? अमेरिका ने सदस्य देशों की सर्वसम्मति से खुद को अलग नहीं किया। वार्षिक महासभा के पहले दिन अमेरिका ने ज्यादातर चीन को अपने निशाने पर लिया था।
डब्ल्यूएचओ की बैठक में मंगलवार को पारित किया गया प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं है और इसमें किसी देश के नाम का उल्लेख नहीं है। इसमें देशों से यह आह्वान भी किया गया है कि वे कोविड-19 के किसी भी उपचार और वैक्सीन तक सभी के लिए पारदर्शी, समान और सामयिक पहुंच सुनिश्चत करें। इसमें वायरस की उत्पत्ति का विवादास्पद मुद्दा भी शामिल है। चीन में गत वर्ष सामने आए इस वायरस को लेकर डब्ल्यूएचओ से कहा गया है कि उसे इस वायरस के स्त्रोत और मानव आबादी तक इसके प्रसार की जांच में मदद करनी चाहिए।
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