नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन।
दुनिया के जाने माने स्वास्थ्य विशेषज्ञ आशीष झा और जोहान गिसेक का मानना है कि कोरोना वायरस फिलहाल अभी खत्म होने की उम्मीद नहीं है। इसकी वैक्सीन भी आने में अभी वक्त लगेगा। इसलिए इस वायरस के साथ ही जीवन को आगे बढ़ाना होगा। सावधानी के साथ लॉकडाउन खोलना होगा और आर्थिक गतिविधियों को गति देनी होगी। झा भारतीय मूल के अमरीकी लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं और गिसेक स्वीडन के कोरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर एमिरेटस हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड़ से सांसद राहुल गांधी ने संवाद श्रृंखला की कड़ी में ही बुधवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए दुनिया के इन दो नामी स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बातचीत की।
लंबे समय तक रहने वाला है कोरोना
राहुल के सवालों का जवाब देते हुए झा ने कहा कि कोविड-19 की जांच और लॉकडाउन को लेकर भारत को रणनीति बनानी होगी, क्योंकि यह लंबे समय तक रहने वाला है। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस का जितना आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव है, उससे कहीं ज्यादा मनोवैज्ञानिक असर है। सरकारों को इस ओर ध्यान देना होगा। हॉरवर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के निदेशक और हाल ही में नियुक्त हुए ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डीन आशीष झा ने कहा कि जब लॉकडाउन लागू किया जाता है तो लोगों के लिए यह संदेश होता है कि स्थिति बेहद गंभीर है।
पहले लोगों में विश्वास जगाना होगा
ऐसे में जब आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए लॉकडाउन हटाना है तो पहले लोगों में विश्वास जगाना होगा कि हालात स्थिर हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस अगले 18 महीने तक रहने वाली समस्या है। इसलिए इसकी टेस्टिंग ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए। राहुल ने पूछा कि भैया, यह बताइए कि वैक्सीन कब तक आएगी, इसके जवाब में झा ने कहा कि तीन देशों में उम्मीद है कि जल्द आएगी। लेकिन अगले साल तक ही इसकी संभावना है।
सरकारों को रणनीति बनाने की जरूरत
लॉकडाउन हटाने संबंधी राहुल के सवाल पर झा ने कहा कि सरकारों को रणनीति बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत के साथ अच्छी बात यह है कि ज्यादातर नौजवान आबादी है, जिसके लिए कोरोना वायरस ज्यादा घातक नहीं है। लेकिन कोई यह मान ले कि उसे कोरोना नहीं होगा, गलत होगा। युवाओं और खुले में काम करने वालों को सतर्क रहने की जरूरत है। न्यूयार्क का हवाला देते हुए झा ने कहा कि जो परिवार एक साथ रहते हैं, उन पर ज्यादा खतरा है। युवा बाहर जाते हैं और घर वापस आते हैं तो बुजुर्गों पर खतरा बढ़ जाता है।
केंद्र से राज्य को ताकत देने की जरूरत
उन्होंने कहा कि कोरोना को एक जगह नहीं रोक सकते, ऐसे में केंद्र से राज्य को ताकत देने की जरूरत है ताकि जमीन पर लड़ाई लड़ी जा सके। उन्होंने कहा कि लोगों को अब समझने की जरूरत है कि जीवन बदलने वाला है। पहले जैसा कुछ भी नहीं रहने वाला। कोरोना के बाद दुनिया नई किताब होगी। वहीं स्वीडन के प्रोफेसर जोहान ने भी कोरोना वायरस की अगले कई महीनों तक मौजूदगी की संभावना जताई। उन्होंने कहा कि वैसे यह कोई गंभीर बीमारी नहीं है। 99 फीसद लोग इसमें ठीक हो जा रहे हैं।
लॉकडाउन में लचीलेपन की जरूरत
राहुल के एक सवाल पर जोहान ने स्वीडन का हवाला देते हुए कहा कि हमने पहले देश को पूरी तरह से शटडाउन कर दिया, फिर धीरे-धीरे हटा दिया है। भारत में भी लॉकडाउन लंबे समय तक बना रहना अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा। लॉकडाउन में लचीलेपन की जरूरत है। गिसेक का मानना है कि लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से खोला जाना चाहिए। कुछ पाबंदियां हटाई जाएं, लेकिन संक्रमण बढ़ता है तो फिर से कदम पीछे खींच लीजिए। उन्होंने कहा कि टेस्टिंग को लेकर रणनीति बनानी होगी। जिसमें जगह, उम्र के हिसाब से टेस्ट करने होंगे और बुजुर्गों-बीमारों का ख्याल रखना होगा।
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