अल्हड़पन के श्रृंगार से सजी रवि प्रधान की ये कविता 

           
             
            उस पगली का सितम 


अमराई में जब जब कोयल पंचम सुर में गाती है।
तब तब उस पगली की मुझको बेजा याद सताती।।


गर्दिश के दिनों में किन-किन का ईमान गिरा नजरों से।
छुप छुप के आला दर्जे के कुछ-कुछ नाम गिनाती है।।


कैसे कह दूं उसको मेरी अब कोई परवाह नहीं।
जब शाम ढले तुलसी के नीचे दीपक रोज जलाती है ।।


कहते हैं उसकी जुल्फें आज भी काली काली है।
किसी को क्या पता कि वो मेंहदी खूब लगाती है।।


न लिखा पढ़ी न बै-नामा न कोई इक़रार हुआ।
फिर भी दिल के हर कोने में अधिकार जताती है।।


रवि प्रधान
( रवि प्रधान जबलपुर के जानेमाने कथाकार और कवि हैं. ) 


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