चीन से हिंसक संघर्ष : दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल प्रोजेक्ट पर संकट


नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन।
लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने से भारत में चीन और चीनी सामान के बहिष्कार की मांग रफ्तार पकड़ रही है। इसके चलते जहां दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल के प्रोजेक्ट पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल प्रोजेक्ट में न्यू अशोक नगर से साहिबाबाद के बीच 5.6 किलोमीटर का टनल और आनंद विहार में भूमिगत स्टेशन बनाने के काम में चीन की शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (एसटीईसी) न्यूनतम बोलीदाता है।


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, स्वदेशी जागरण मंच समेत विभिन्न संगठनों और विपक्ष के सियासी दलों की ओर से चीन और चीनी सामान के बहिष्कार को हवा दी जा रही है। ऐसे में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही चीनी कंपनियों से काम छिनने का दबाव बढ़ता दिख रहा है। इसी क्रम में दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस प्रोजेक्ट भी प्रभावित होता दिख रहा है। सूत्र बता रहे हैं कि गलवान घाटी की घटना के बाद केंद्रीय राजमार्ग मंत्रालय आरआरटीएस प्रोजेक्ट के न्यू अशोकनगर-साहिबाबाद टनल और आनंद विहार के भूमिगत स्टेशन के ठेके पर पुनर्विचार कर रहा है। कहा यह भी जा रहा है कि केंद्र सरकार इस निविदा प्रक्रिया को ही निरस्त करने की तैयारी में है। 


हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है, लेकिन फाइनेंसियल बिड खुले तीन दिन बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने अब तक चीनी कंपनी एसटीईसी को काम आवंटित (लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस) नहीं किया है। प्रधानमंत्री की ओर से वोकल फॉर लोकल की मुहिम छेड़ने के बाद केंद्र सरकार उन तमाम सेक्टर की समीक्षा कर रही है, जिनमें अभी विदेशी कंपनियों की दखल या हिस्सेदारी ज्यादा है। उनकी जगह अब भारतीय कंपनियों को प्रमुखता देने की मंशा से उन प्रोजेक्ट की समीक्षा भी की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि कुछ सेक्टर में विदेशी कंपनियों को हटाने पर भी चर्चा हो रही है। ऐसा होता है तो दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल प्रोजेक्ट पर भी असर पड़ना तय है।


इधर, आरएसएस और स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों ने चीन के बहिष्कार के मुहिम को हवा देनी शुरू कर दी है। इससे सौर ऊर्जा और फार्मा सेक्टर से जुड़े निवेशक परेशान हैं। सौर ऊर्जा सेक्टर में तमाम उपकरणों का आयात चीन से किया जाता है। वहीं फार्मास्यूटिकल सेक्टर में भी भारतीय बाजार में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। चीन के बहिष्कार की मांग ने रफ्तार पकड़ा तो इन दोनों सेक्टर पर गहरा असर पड़ेगा। भारत में इन उपकरणों के निर्माणकर्ता सीमित हैं। मलेशिया, वियतनाम व अन्य देशों के पास भी भारत की मांग के मुताबिक निर्यात की क्षमता नहीं है। वहीं स्थानीय (लोकल) उत्पादकों को अपनी क्षमता बढ़ाने में ही लंबा वक्त लग जाएगा। ऐसे में सौर ऊर्जा और फार्मास्यूटिकल सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।


वहीं जानकारी आ रही है कि भारतीय संचार मंत्रालय ने बीएसएनएल और एमटीएनएल को निर्देश दिया है कि 4जी के क्रियान्वयन के लिए चीन में बने किसी भी उपकरण का इस्तेमाल न करें। इसके साथ ही काम के लिए जो निविदा निकाली जा रही है, उसे इस तरह से ड्राफ्ट किया जाए और शर्ते निर्धारित की जाएं, जिससे चीन की कोई कंपनी हिस्सा न ले सके। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि चीन के बहिष्कार को देखते हुए चीनी मोबाईल कंपनी ओप्पो ने भारत में अपनी ऑन लाइन लांचिंग फिलहाल के लिए रद्द कर दी है।


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