गांव की जमीन को चूमती रवि प्रधान की ये कविता 

 


 


भूखे पेट, खाली जेब, और नंगे पांव ।


भूखे पेट, खाली जेब, और नंगे पांव ।
रमुआं दमुआं लौट चले अपने अपने गांव ।।


सडकें सूनी, गलियां सोनी, अंधेरों ने पैर पसारे हैं।
शहर शहर, गली गली, देखो भटक रहे बेचारे हैं।


अब जाने इनको कहां मिलेगी ठांव।।


कुछ जतन करो ऐसा कि मानवता शर्मसार ना हो ।
गली मुहल्ले में कोई भूख से बेबस लाचार न हो।


पग दो पग ही सही, खे दो इनकी नांव।।


भूखे पेट, खाली जेब, और नंगे पांव ।
रमुआं दमुआं लौट चले अपने अपने गांव ।


रवि प्रधान 
( रवि प्रधान जबलपुर के जानेमाने कथाकार और कवि हैं. )  


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