मैंने साक्षात देखे हैं, सफेद लिबास में देवदूत : पत्रकार अभिषेक सोनी


जबलपुर/अक्षर सत्ता/ ऑनलाइन। कोरोना संक्रमित होने के बाद से लेकर इलाज कराने और फिर कोरोना की जंग जीतकर समाज की मुख्यधारा से जुडऩे तक के दृश्य को अक्षरश: चित्रित करता कोरोना योद्धा युवा पत्रकार अभिषेक सोनी के उद्गार..... जो कोरोना के प्रति व्याप्त धारणा और इलाज के दौरान की जीवंत गाथा है। साथ ही उपचार के दौरान चिकित्सकों और स्टॉफ के सहयोगात्मक, सद्व्यवहार की नजीर बन गई और कोरोना संक्रमितों के मन में जल्द स्वस्थ्य होने का जज्बा, हौसला और साहस बढ़ाने की दास्तां है। अभिषेक की जुबानी सिलसिलेवार कहानी…


ईश्वर को किसी ने देखा नहीं, प्रतिमाओं की भाव से पूजा-ध्यान करके ही मैने बचपन से युवा अवस्था तक, जो मांगा, मिला...। पत्रकारिता की पावन विधा में कर्मपथ पर चलते हुए 10 जुलाई को अचानक जीवन में मानो तूफान सा आ गया, रात को खबर आई कि मेरी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव है...सब थम गया, भविष्य के सारे सपने आंखों के सामने तैर गए, मां-बाबूजी कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं थे, अलग कमरे में मैने सारी रात गुजार दी, उस रात मैं सोया नहीं...चिंता के महासागर में उठती लहरों ने मुझे  हिलाकर रख दिया...।


      अगले दिन सुबह 11.30 बजे प्रशासन की ओर से एम्बुलेंस घर के सामने आकर खड़ी हो गई, परिवार के लोगों ने मेरा बैग लगाया, उसमें जरूरी सामान था ...मां-बाबू जी की आंखें नम थीं, वे हौसला बढ़ाने में भी समर्थ नहीं दिख रहे थे, मेरा मन भी आशंकाओं और इस महामारी के दानव से जीतने के लिए खुद को सक्षम नहीं पा रहा था..लेकिन जिस ईश्वर को कभी देखा नहीं, उसने शायद मुझे शक्ति दी, घर से सभी ने हौसला देकर विदा किया।


      मेडिकल अस्पताल पहुंचा, यहां गेट पर ही सेनिटाइजेशन की गहन प्रक्रिया के बाद मुझे वार्ड में बिस्तर दिया गया, पास में एक दराज में सारा सामान जमा करके बुखार से कांपता शरीर, बिस्तर पर गिर गया..आंखों में आंसू थे, भय का अंधेरा घेरने लगा, जिससे मैं खुद को निकाल ही नहीं पा रहा था...तभी सफेद लिबास (पीपीई किट) में मेरे बिस्तर के पास नर्स और डॉक्टर आए...मेरा हौसला बढ़ाया, जरूरी टेस्ट किए, सिर पर हाथ फेरकर कहा..सब ठीक होगा, उनके इतना कह देने से भी मुझे फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि सरकारी अस्पतालों की कथित व्यवस्थाओं का जो चित्र मेरे मन-मस्तिष्क पर था, उससे में घबराया हुआ था।


      दोपहर तक मेरी मेडिकल हिस्ट्री तैयार थी, दवाएं मेरे सिराहने रखी जा चुकी थीं, नर्स ने मुझे बहुत ही स्नेहपूर्ण भाव से हौसला बढ़ाते हुए दवा दी, कुछ देर बाद वार्ड के दूसरे स्टाफ  ने भी मुझसे बात की। शाम होते-होते तक बुखार में कुछ कमी थी, भरोसे की दलदली जमीन कुछ ठोस हुई...सफेद लिबास में अपनी जान को दांव पर लगाए वार्ड में नर्स-चिकित्सक, सफाई कर्मी, वार्डव्बॉय, ऐसे लग रहे थे, जैसे देवदूत हों...। 


      शहर में रहते हुए भी मैं परिवार से शारीरिक रूप से दूर था, यह दूरी मुझे कई समंदर पार जैसी लगती थी, लेकिन अस्पताल के स्टाफ और वार्ड के मरीजों से मेलजोल ने मुझे नई शक्ति दी, वार्ड में कोरोना की जंग जीतकर स्वस्थ्य हुए ओम सेन, निवासी गढ़ा फाटक और विशाल विश्वकर्मा, मिले। उनका मरीजों के प्रति सेवाभाव देखकर मैं भी तीसरे दिन से उनके साथ हो गया, वार्ड के सभी मरीजों से बातचीत, चिकित्सकों विशेषकर डॉ. संदीप सिंह के सहयोगात्मक व्यवहार और नर्सों का स्नेहिल भाव, सफाई कर्मियों का अनुशासन और अपनापन देखकर मुझे ठीक होने की आस बंध गई। ओम और विशाल सभी मरीजों के खाने-पीने का पूरा ध्यान देते थे, वे किसी को भूखा नहीं सोने देते, जो अंदर से टूट रहे थे, उन्हें सकारात्मक ऊर्जा देते थे।


      आखिर वो दिन भी आ गया, जिसकी मुझे उम्मीद क्षीण थी, 21 जुलाई को मेरी मेडिकल से छुट्टी हो रही थी, वार्ड के सभी स्टाफ ने सुबह से मुझसे मुलाकात की, मेरे पास उनके आभार जताने के लिए शब्द नहीं थे...पत्रकार होते हुए भी मैं कोई शैली नहीं ढूंढ पा रहा था, जिससे उनकी सेवा के बदले में उन्हें धन्यवाद कर सकूं...शायद यही ईश्वर के प्रति हमारे भाव में होता है, हम जब ईश्वर के समक्ष खडेÞ होते हैं, तो भाव ही होते हैं, शब्द शून्य हो जाते हैं...यही मेरे साथ हुआ।


      अस्पताल से रवाना हुआ, घर के सामने एम्बुलेंस खड़ी हुई, गेट पर मां-बाबू जी, परिवार के सदस्यों की आखें भरीं थीं, लेकिन इस बार उन्हें गर्व था, मुझ पर, मेरे हौसले पर...आंगन में नहा-धोकर मैने घर में प्रवेश किया, सभी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, जीवन की जिस जंग से लौटकर मैं आया, उसके पीछे मेरे तमाम स्नेही, शुभेच्छु, परिजनों की दुआएं थीं, लेकिन मैं अस्पताल में जिन देवदूतों के बीच अपनी जिदंगी की इस लड़ाई का परचम फहराकर लौटा हूं, उन्हें आखिरी सांस तक नहीं भूलूंगा...। मैने उनका चेहरा नहीं देखा, लेकिन मैने कभी ईश्वर को भी तो नहीं देखा...उसकी शक्ति का साक्षात्कार किया है मैने....


 सभी को भावूपर्ण नमन-वंदन। डर का दरिया पार कर.. कोरोना पर वार कर।


देवदूत बैठे हैं अस्पताल में... चिंता ना कर, बस अपने हौसले को पाषाण कर।


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