नवीन चतुर्वेदी की कविता- “राखी सरताज”

“राखी सरताज”



बहना की दादागिरी, भैया की मनुहार ।
ये सब ले कर आ रहा, राखी का त्यौहार ।।
राखी का त्यौहार, यार क्या कहने इस के ।
वो “राखी सरताज”, बीस बहना हों जिस के ।
ठूँस-ठूँस तिरकोन मिठाई खाते रहना ।।
फिर से आई याद, हमें राखी औ बहना।।


सबसे पूर्व सगी-बड़ी, बहना का अधिकार ।
उस के पीछे साब जी, लाइन लगे अपार ।।
लाइन लगे अपार, तिलक लगवाते जाओ ।
गिन गिन के फिर नोट, तुरंत थमाते जाओ ।
मॉडर्न डिवलपमेंट, हुआ भारत में जब से ।
ये अनुपम आनंद, छिन गया, तब से, सब से ।।


नवीन चतुर्वेदी


Post a Comment

और नया पुराने