संजय सिंघई की नई कविता
हम तो बादल हैं आवारा
हम तो बादल हैं आवारा,
बरसेंगे झूम कर,
उन टोलियों पर जहां जमा रासरंग
जहां बज रही मृदंग
जहां कृष्ण है राधा संग।
हम तो बादल हैं आवारा,
बरसेंगे जोर से,
जहां खनक रहे प्याला,
आबाद हो मधुशाला,
बेसुध हो जमाना,
जीवन हो खुदरंग
घुट रही हो भंग।
हम तो बादल हैं आवारा,
गरजेंगे जोर से,
जहां नराधम हों , आवारा
कंस का हो बोलबाला,
अस्मत लुट रही हो
सल्तनत बट रही हो।
हम तो बादल हैं आवारा,
फटेंगे उस जहां पर
दुश्मन हो हमारा,
सरहदों का किनारा,
बन मौत का जनाजा।
(संजय सिंघई, जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं.)
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