बिहार : मिर्जापुर में 6 अप्रैल को किसानों से वार्ता करेंगे कृषि वैज्ञानिक


कीड़े और बीमारियों को नियंत्रण करने को ले दिए जाएंगे उपाय के सुझाव

रिपोर्टर सतीश मिश्रा 

मोतिहारी/पूर्वी चम्पारण/बिहार/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। पूर्वी चंपारण के मेहसी के आसपास के लीची के बाग में स्टिंक बग का प्रकोप पुनः बढ़ गया है। जिससे कई किसान काफी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। किसानों के आग्रह पर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर 6 अप्रैल 2021 को मेहसी के मिर्जापुर के लीची  के बाग में किसानों से कृषि वैज्ञानिक वार्ता करेंगे। जिसमें लीची के स्टिंक बग के अलावा अन्य कीड़े एवं बीमारियों को नियंत्रण करने के उपाय बताए जाएंगे। 

लीची का स्टिंक बग है क्या ?

स्टिंक बग को लीची की बदबूदार बग जिसका वैज्ञानिक नाम टेसारोटोमा जावानिका है। यह बदबूदार बग आमतौर पर अप्रैल के अंतिम सप्ताह से लीची पर दिखाई देता है और अगस्त के अंतिम सप्ताह के बाद बाग से गायब हो जाता है और वयस्क अवस्था में सुषुप्तावस्था (हाइबरनेशन) से गुजरता है। सुषुप्तावस्था में पड़े वयस्क जनवरी के अंतिम  सप्ताह में सक्रिय हो जाते हैं और लीची के अन्य पेड़ों पर फैलना शुरू कर देते हैं जो लीची की शाही किस्म में मंजर निकलने के समय से मेल खाता  है। मंजर निकलने के साथ ही साथ वयस्कों का संभोग फरवरी के पहले सप्ताह से शुरू होता है। वयस्कों का झुण्ड लीची के पौधों पर फरवरी के पहले सप्ताह से शुरू होता है, और फरवरी के दूसरे सप्ताह के दौरान अंडे का समूह नवोदित पत्तियों की निचली सतह पर देखा जा सकता है। बग की वयस्क झुण्ड और नवजात खाऊ-रूप से नवोदित पौधे के मुलायम हिस्सों यथा-बढ़ती कलियाँ, पत्तियां, पत्तीवृंत, पुष्पक्रम, विकसित होते फल आदि से रस चूसते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फूल और फल गिरते हैं। युवा टहनियों का उत्तक क्षय होने से टहनी के शीर्ष भाग मृत होकर सूखने लगते और फल काले पड़ जाते हैं।

क्या है इसका इतिहास ?

बिहार में लीची स्टिंक बग नामक इस कीट का प्रकोप पहली बार मई 2018 में बड़े पैमाने पर पूर्वी चंपारण के मेहसी एवं चकिया क्षेत्र के बागों में देखा गया था।  जिसके कारण लीची की फसल को नुकसान हुआ था। इस कीट के मादाओं को अत्यधिक जन्म देने की क्षमता होती है और लीची की फसल को गंभीर नुकसान (80 प्रतिशत से भी अधिक) पहुंचाते हैं। मार्च और अप्रैल महीनों में लीची के पेड़ों पर नवजात बग की संख्या औसतन 45-159 प्रति 30-सेमी लंबी डंठल देखी गई है। टेसारोटोमा जावानिका प्रजाति का यह कीट झारखंड में वृहत पैमाने पर पाया जाता है। कुसुम के पौधों से इसे विशेष लगाव है। कीटों का प्रकोप जंगली कुसुम के पेड़ों से लीची की फसल में स्थानांतरगमन हो जाने के कारण हो सकता है। फरवरी से अप्रैल के बीच लीची के बागों में इसका आक्रमण होता है।

स्टिंक बग का नियंत्रण कैसे करें ?

कम लीची के पौधे हॉट उसे अच्छी तरह हिलाये तथा गिरे हुए प्रौढ़ कीटों को इकट्ठा कर जमीन में दबा दें। जिन किसानों के बागों में पिछले साल इसका अधिक प्रभाव था, वे ट्राइजोफास 40 ई.सी. (1.5 मिली) + थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी (0.5 मिली) के साथ स्टीकर (0.3 मिली) को प्रति लीटर पानी की दर से घोल तैयार कर छिड़काव करें। ट्राइजोफास 40 ई.सी. (1.5 मिली)+ लेम्ब्डा सायहैलोथ्रिन (1.0 मिली) के साथ स्टीकर (0.3 मिली) को प्रति लीटर पानी की दर से घोल तैयार कर छिड़काव करें।

अथवा /या डायमेथोएट 30 ई.सी. (1.5 मिली) + लेम्ब्डा-सायहैलोथ्रिन (1.0 मिली) एवं स्टीकर (0.3 मिली) को प्रति लीटर पानी की दर से घोल तैयार कर छिड़काव करें.

विशेष जानकारी के लिए किसान भाई राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुशहरी, मुजफ्फरपुर में व्यक्तिगत भ्रमण अथवा वैज्ञानिको से दूरभाष पर  संपर्क करके लीची से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। दूरभाष का विवरण निम्नवत है।

किसान जानकारी लेने हेतु दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकते हैं - 

डॉ. विनोद कुमार, प्रधान वैज्ञानिक (पौध सुरक्षा) : 9162601559

डॉ. संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक (फल विज्ञान) : 9546891510

डॉ. एस. डी. पाण्डेय, निदेशक: 9835274641 

( कीड़े और बीमारियों से बचाव के लिए किसानों को सामूहिक प्रयास करने की सलाह दी जाती है।)



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