बिहार : ऑटिज्‍म से महिलाओं की अपेक्षा पुरूष अधिक ग्रसित


विश्‍व ऑटिज्‍म जागरूकता दिवस पर एक दिवसीय ऑटिज्‍म जन-जागरूकता एवं संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन 

रिपोर्टर सतीश मिश्रा 

पटना/बिहार/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। समर्पण (बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल मेडीसिन, चिकित्सीय प्रबंधन, मानसिक स्वास्थ्य, विशेष शिक्षा, अनुसंधान और पुनर्वास केन्‍द्र दिव्‍यांगजन), चाईल्‍ड कन्‍सर्न एवं इण्डियण स्‍पोर्टस फेडेरेशन ऑफ ऑटिम के संयुक्‍त तत्‍वाधान में विश्‍व ऑटिज्‍म जागरूकता दिवस के अवसर पर समर्पण सेमिनार हॉल, गंगा विहार कॉलोनी, इलाहीबाग, बैरिया आईएसबीटी (नया बस स्टैंड) के पास, पहाड़ी, पश्चिम दक्षिण बादसाही पैन, पटना में एक दिवसीय ऑटिज्‍म जन-जागरूकता एवं संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया। आज के कार्यशाला का मुख्‍य अतिथि डॉ. शिवाजी कुमार, राज्‍य आयुक्‍त नि:शक्‍तता (दिव्‍यांगजन), समाज कल्‍याण विभाग, बिहार सरकार नीला रोशनी कर किया गया। विशिष्‍ट अतिथि के रूप में मोती लाल (अध्‍यक्ष बिहार एसोसिएशन ऑफ पीडब्‍ल्‍यूडी), धीरेन्‍द्र कुमार (समाजसेवी), श्रीमति सुलेखा कुमारी (सचिव,समर्पण), श्रीमति मधु श्रीवास्‍तव (अध्‍यक्ष बिहार सिविल सोसाईटी फोरम) साथ ही सुगन्ध नारायण प्रसाद (कार्यक्रम समन्‍वयक), संतोष कुमार सिन्‍हा, ई. रविन्‍द्र प्रसाद, वेद प्रकाश, राहुल कुमार, सुप्रभात, अंकित मिश्रा, अमृत कुमार, राधा कुमारी, निरंजन कुमार, उत्‍तम कुमार, भारती कुमारी एवं सैंकड़ो दिव्‍यांगजन, अभिभावकगण, समाजसेवी आदि सरकार द्वारा जारी कोविड-19 गाईडलाइन का पालन करते हुए उपस्थित थे।   

मुख्‍य अतिथि डॉ. शिवाजी कुमार ने बताया कि पूरे विश्‍व में 2 अप्रैल को विश्‍व ऑटिज्‍म जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में दो अप्रैल को विश्‍व ऑटिज्‍म जागरूकता दिवस के रूप में घोषित किया गया था। उन्‍होने ने बताया कि ऑटिज्‍म एक न्‍यूरो डेवलपमेंटल विकार है, जिसके कारण बच्‍चों में संज्ञानात्‍मक, भावनात्‍मक, व्‍यक्तिगत एवं संप्रेषण विकास प्रभावित होता है।  इस दिन ऑटिज्‍म (स्‍वालिनता) से ग्रसित बच्‍चों एवं बड़ों के जीवन में सुधार के कदम उठाए जाते हैं । नीला रंग ऑटिज्‍म का प्रतीक माना गया है। ऑटिज्‍म एक छिपी छिपी बॉद्धिक दिव्‍यांगता है जो बच्‍चों के प्रारंभ में पता नहीं चलता है लेकिन बच्‍चा जैसे-जैसे बड़ा होता है उसमें ऑटिज्‍म के लक्ष्‍ण सामने आने लगती है। ऑटिज्‍म को पहचान कर सही समय पर विशेषज्ञों के सलाह द्वारा उसमें सुधार लाया जा सकता है। ऑटिज्‍म को पहचानने का सही तरीका है जैसे वह खुद में खोया रहता है, एक ही काम को  बार-बार दोहराना, सुन कर अनसुना करना, शब्‍द पहचानने में दिक्‍कत, डरना, शांत रहना आदि। ऑटिज्‍म के बच्‍चों में स्‍पीच थेरैपी, ऑकुपेशनल थेरैपी, विहैवियर एवं रिलेशनशिप थेरैपी, शैक्षणिक थेरैपी एवं विशेषज्ञों के परामर्श से सुधार लाया जा सकता है। 

ऑटिज्‍म से ग्रसित बच्‍चों में सुधार लाने के लिए खेल-खेल में नए शब्‍दों का प्रयोग करें, बारी-बारी से खेलने का आदत डालें, छोटे-छोटे वाक्‍यों का प्रयोग करें, बच्‍चों को शबासी दें उन्‍हें बोलने के लिए प्रेरित करें, बच्‍चे को घर के अलावा अन्‍य लोगों से नियमित रूप से मिलने का मौका दें, बच्‍चे को पार्क में ले जायें, अन्‍य लोगों से बात करने के लिए बच्‍चे को प्रेरित करें, बच्‍चे को तनाव मुक्‍त रखें, प्रोत्‍साहन के लिए रंग-बिरंगी, चमकीली तथा ध्‍यान खिंचने वाली चीजों का इस्‍तेमाल करें, बच्‍चे को व्‍यायाम, दौड़ तथा बाहरी खेलों में लगाएं इन सभी गतिविधियों से ऑटिज्‍म से ग्रसित बच्‍चों में सुधार लाया जा सकता है।

समर्पण बिहार में कार्य कर रहे सभी 38 जिलों के यूनिटों में 21 हजार से अ‍धिक अभिभावकगण जुड़े हुए हैं। सभी यूनिटों के कार्यकारी समन्‍वयक द्वारा आज  ऑटिज्‍म   जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। समर्पण पटना द्वारा 75 से अधिक ऑटिज्‍म एवं विभिन्‍न दिव्‍यांगता से ग्रसित बच्‍चों का शिक्षण-प्रशिक्षण, व्‍यावासायिक प्रशिक्षण एवं पुनर्वास का कार्य पिछले 25 सालों से किया जा रहा है।

ऑटिज्‍म जागरूकता कार्यक्रम का संचालन सुगन्ध नारायण प्रसाद एवं धन्‍यवाद ज्ञापन संतोष कुमार सिन्‍हा के द्वारा किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में राहुल कुमार, पुनम देवी, हेमन्‍त लाल, आशा कुमारी आदि की महत्‍वपूर्ण भूमिका रही।

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