कविता : हाथी उड़ रहा था...सच को बयां करती संजय सिंघई की कविता



हाथी उड़ रहा था

हाँ जी,  हाँ जी,
जी हाँ,
जैसा आपने कहा,
वैसे ही हुआ,
हाथी उड़ रहा था,
बहुत ऊपर था,
आसमाँ के ऊपर,
हाँ जी, हाथी ही था,
जो उड़ रहा था,
आप उसे देख रहे थे,
हाँ जी,
हुजूर, हाथी ही था,
बहुत बड़ा हाथी।

संजय सिंघई, खाँटी जबलपुरी
( जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार और मानवीय संवेदनाओं  की धड़कनों को 
महसूस करने वाले उम्दा कवि संजय सिंघई )

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