कविता : प्यारा गुलमोहर

प्यारा गुलमोहर


घनी-हरी पत्तियां प्यारी, मनभावन खुशियों की क्यारी।

लदी-फंदी फूलों से डाली, गुलमोहर की छटा निराली।

लाल-नारंगी फूल निराले, भंवरे झूम रहे मतवाले।

सुबह-शाम सूरज की लाली, कर जाती रंगों को खाली।

तितली करती घुमर-घुमर, प्यारा-प्यारा गुलमोहर।

नरेन्द्र सिंह नीहार 

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