दर्दनाक: कोरोना संक्रमित शव घर में ही दफनाकर बहन ने दी मुखाग्नि, मदद के लिए कोई नहीं आया



पटना/बिहार/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। बिहार के सहरसा के बसनही थाना क्षेत्र अंतर्गत रघुनाथपुर पंचायत से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है, जहां कोरोना ने रिश्ते को भी बदल दिया। जहां स्थानीय नीवासी कैलाश कामत का 25 वर्षीय पुत्र अमरीश कामत की मौत कोरोना की चपेट में आने से मौत हो गई। मौत के बाद रविवार की सुबह स्थानीय प्रशासन को इसकी जानकरी दी गई, लेकिन घंटों इंतजार के बावजूद कोई नहीं पहुंचा। 

स्थानीय लोग भी मदद को आगे नहीं आये। शव घर में पड़ा हुआ था, कोई उठाने वाला भी नहीं था। मौत की सूचना पर सगे-संबंधी भी नहीं पहुंचे। हाल यह हुआ कि अंतिम संस्कार करने के लिए उसे दो गज जमीन तक नहीं मिल सकी। बताया जाता है कि कैलाश कामत जिस जगह पर शुरू से अपने दादा, परदादा सबका अंतिम संस्कार करते आए थे, वहां लोगों ने अंतिम संस्कार कराने से मना कर दिया। 

इसकी सूचना प्रशासन को दी गई। लेकिन कोई नहीं आया। आखिरकार परिजनों ने शव को अपने ही आंगन में गड्ढा खोद कर दफना दिया। मृतक तीन भाई और तीन बहन थे, वह सबसे बड़ा था। इस घटना के समय उसके दोनों छोटे भाई घर से बाहर थे। तीन बहन में दो की शादी हो गई है और छोटी बहन 7 वर्षीय राधा कुमारी ने अपने भाई को मुखाग्नि देकर घर के आंगन में ही उसे दफना दिया। 

लेकिन इस संकट में समाज के किसी भी लोगों ने कोई सहयोग नहीं किया। वर्तमान मुखिया पति सियाचारन मंडल को भी उसने बार-बार फोन किया, लेकिन वह भी नहीं आये। प्राप्त जानकारी के अनुसार मृतक अमरीश कामत पहले से ही टीबी का मरीज था, जिसका इलाज भी चल रहा था। अचानक बीते गुरुवार को तबीयत खराब होने पर सोनवर्षा निजी क्लिनिक ले जाया गया, जहां उन्हें बेहतर इलाज के लिए सोनवर्षा पीएचसी ले जाने के सलाह दी। 

जहां जांच के बाद कोरोना उसे कोरोना से संक्रमित बताया गया। वहां से चिकित्‍सकों ने सहरसा सादर अस्पताल ले जाने को कहा। लेकिन उसे न तो कोई सरकारी एंबुलेंस मिला और न ही कोई प्राइवेट वाहन ले जाने के तैयार हुआ। कैलाश कामत ने बताया कि पीएचसी प्रबंधन के बार-बार आग्रह करने के बावजूद उन्‍हें एंबुलेंस नहीं मिली। वे अपने बीमार पुत्र को घर वापस लौट गया। 

शुक्रवार को इलाज नहीं करा पाने के कारण वह घर लौट गया और शनिवार को उसकी मौत हो गई। उन्‍होंने कहा कि अगर समय रहते मेरे बीमार पुत्र को बेहतर इलाज के लिए सोनवर्षा राज पीएचसी द्वारा सहरसा ले जाने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था दी जाती तो बेटे की जान बच सकती थी।

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