लेख : ताउते का कहर, जलवायु परिवर्तन के संकट महसूस कीजिए

लेख : ताउते का कहर,  जलवायु परिवर्तन के संकट महसूस कीजिए
ज्ञाानेन्द्र रावत

अरब सागर में उठे और केरल, कर्नाटक में कोहराम मचाते हुए ताउते नामक चक्रवाती तूफान ने महाराष्ट्र और अब दीव में भारी तबाही मचाई है। करीब 185 किलोमीटर की रफ्तार से चल रही हवाओं से सैकड़ों पेड़ उखड़ कर गिर गये, उनके नीचे वाहन, इनसान और जीव-जंतु दब गये। हज़ारों घर क्षतिग्रस्त हुए। तकरीबन 184-186 मिलीमीटर बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ। यातायात प्रभावित हुआ, हवाई उड़ानें ठप रहीं। मुंबई हवाई अड्डा ग्यारह घंटे बंद रहा। बहुतेरे कोविड सेंटर भी तबाह हो गये।

दरअसल, बीते साल मई में आये अम्फान तूफान, जून में आये निसर्ग तूफान और नवम्बर में आये निवार तूफान, जिसने तमिलनाडु में भारी तबाही मचाई थी, से भी अधिक भयावह यह ताउते तूफान है। वैज्ञानिकों ने इसे गंभीर तूफान करार दिया है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ और तेज हवाओं की भयंकर गति का इसे भयावह बनाने में अहम योगदान है, जिसने सात राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है।

दरअसल जलवायु परिवर्तन आज एक ऐसी अनसुलझी पहेली है, जिससे हमारा देश ही नहीं, समूची दुनिया जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन और इससे पारिस्थितिकी में आये बदलाव के चलते जो अप्रत्याशित घटनाएं सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए इस बात की प्रबल संभावना है कि इस सदी के अंत तक धरती का काफी हद तक स्वरूप ही बदल जायेगा। इस विनाश के लिए जल, जंगल और जमीन का अति दोहन जिम्मेवार है। बढ़ते तापमान ने इसमें अहम भूमिका निबाही है। वैश्विक तापमान में यदि इसी तरह बढ़ोतरी जारी रही तो इस बात की चेतावनी तो दुनिया के शोध अध्ययन बहुत पहले ही दे चुके हैं कि आने वाले समय में दुनिया में 2005 में दक्षिण अमरीका में तबाही मचाने वाले कैटरीना नामक तूफान से भी भयानक तूफान आयेंगे। सूखा और बाढ़ जैसी घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी होगी। जहां तक तूफानों का सवाल है, समुद्र के तापमान में बढ़ोतरी होने से स्वाभाविक तौर पर तूफान भयंकर उठते हैं क्योंकि वह गर्म समुद्र की ऊर्जा को साथ ले लेते हैं। इससे भारी वर्षा होती है। कारण वैश्विक ताप के कारण हवा में जल वाष्प बन जाता है।

तापमान में बढ़ोतरी की रफ्तार इसी गति से जारी रही तो धरती का एक-चौथाई हिस्सा रेगिस्तान में तबदील हो जायेगा। दुनिया में भयंकर सूखा पड़ेगा। परिणामतः दुनिया का बीस-तीस फीसदी हिस्सा सूखे का शिकार होगा। इससे दुनिया के 150 करोड़ लोग सीधे प्रभावित होंगे। इसका सीधा असर खाद्यान्न, प्राकृतिक संसाधन और पेयजल पर पड़ेगा। नतीजतन आदमी का जीना मुहाल हो जायेगा। इसके चलते अधिसंख्य आबादी वाले इलाके खाद्यान्न की समस्या के चलते खाली हो जायेंगे और बहुसंख्य आबादी ठंडे प्रदेशों की ओर कूच करने को बाध्य होगी।

जिस तेजी से जमीन अपने गुण खोती चली जा रही है, उसे देखते हुए अनुपजाऊ जमीन ढाई गुणा से भी अधिक बढ़ जायेगी। इससे बरसों से सूखे का सामना कर रहे देश के 630 जिलों में से 233 को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ेगा। कहने का तात्पर्य यह कि देश में पहले से मौजदू सूखे के संकट में और इजाफा होगा। निष्कर्षतः बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खेती के अलावा दूसरे संसाधनों पर निर्भरता बढ़ जायेगी। इससे खाद्यान्न तो प्रभावित होगा ही, अर्थव्यवस्था पर भी भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि ऐसी स्थिति में जल संकट बढ़ेगा। खाद्यान्न उत्पादन में कमी आयेगी, ध्रुवों की बर्फ पिघलेगी, नतीजतन दुनिया के कई देश पानी में डूब जायेंगे। समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ेगा और समुद्र किनारे के सैकड़ों की तादाद में बसे नगर-महानगर जलमग्न तो होंगे ही, तकरीबन बीस लाख से ज्यादा की तादाद में प्रजातियां सदा के लिए खत्म हो जायेंगी।

जीवन के आधार रहे खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व कम हो जायेंगे। कहने का तात्पर्य यह कि उनका स्वाद ही खत्म हो जायेगा। खाद्य पदार्थों में पाये जाने वाले विटामिन्स की कमी इसका जीता जागता सबूत है। समस्या यह है कि हम अपने सामने के खतरे को जानबूझ कर नजरअंदाज करते जा रहे हैं जबकि हम भलीभांति जानते हैं कि इसका दुष्परिणाम क्या होगा। यह भी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मौसम के रौद्र रूप ने पूरी दुनिया को तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है।

दरअसल इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकारों की इस ओर किसी किस्म की सोच ही नहीं है। वह विकास को पर्यावरण का आधार बनाना ही नहीं चाहती। वर्तमान में यह दुर्दशा प्रकृति और मानव के विलगाव की ही परिणति है। निष्कर्ष यह कि जब तक जल, जंगल और जमीन के अति दोहन पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक जलवायु परिवर्तन से उपजी चुनौतियां बढ़ती ही चली जायेंगी और उस दशा में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष अधूरा ही रहेगा।

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