दोहे : सौनचिरैया का फ़रमान
















दोहे

सौनचिरैया का फ़रमान

आरी ने घायल किए, हरियाली के पांव।

कंकरीट में दब गया, होरी वाला गांव॥

धुन्ध-धुएं ने कर दिया, हरियाली का रेप।

चिड़िया फिरती न्याय को, लिए वीडियो-टेप॥

पत्थर के जंगल उगे, मिटे बाग़ औ’ खेत।

क्या-क्या रंग दिखायगा, ये विकास का प्रेत॥

दूर शहर की चिमनियां, देती ये आभास।

जैसे बीड़ी पी रहे, बुड्ढे कई उदास॥

हुए आधुनिक इस तरह, बढ़ा दोस्त अनुराग।

बरगद काट उगा लिए, नागफनी के बाग॥

वन्य-जीव मिटते रहे, कटे वृक्ष दिन-रात।

तो इक दिन मिट जायगी, ख़ुद आदम की जात॥

धुंध-धुएं ने घात दी, रोगी हुए हक़ीम।

असमय बुड्ढा हो गया, आंगन वाला नीम॥

हरियाली पर मत करो, इतना अत्याचार।

दोस्त यही है आपके, जीवन का आधार॥

आरी मत पैनी करो, जंगल करे गुहार।

जीवन-भर दूंगा तुम्हें, मैं ढेरों उपहार॥

अब धरती-आकाश पर, खाओ रहम हुज़ूर ।

बदल रहे हैं रात-दिन, मौसम के दस्तूर॥

मानव! तू तो कर रहा, नये-नये विस्फोट।

घायल धरती औ’ गगन, खाकर निशदिन चोट॥

सूखा, बाढ़, अकाल से, नित्य कर रही वार।

आखिर धरती कब तलक, सहती अत्याचार॥

किस विकास के खुल गए, यारो आज किवाड़।

डरे-डरे हतप्रभ खड़े, जंगल, नदी, पहाड़॥

सौनचिरैया उड़ गई, देकर यह फ़रमान।

तूने तोड़ा घौसला, अब तेरा अवसान॥

- अशोक ‘अंजुम’

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