सूरज का गुस्सा
सूरज दादा का धरती पर, देखो गुस्सा फूट रहा।
लगे आग बरसाने नभ से, सब्र सभी का टूट रहा।
सूख गये सब बाग-बगीचे, बस पेड़ों के ठूंठ खड़े।
पंछी प्यासे डोल रहें हैं, खुश्क हुए तालाब बड़े।
पवन वेग की गर्मी ने तो, जुल्म बड़ा ही ढाया है।
चमक रही है धूप जोर की, नहीं कहीं पर छाया है।
कैद हुए हैं सभी घरों में, सुंदर सदन लगते जेल।
दोपहर हुई सुनसान बड़ी, बंद हैं आपस में मेल।
देख-देख कर चढ़ता पारा, खूब पसीना छूट रहा।
सूरज दादा का धरती पर, देखो गुस्सा फूट रहा।
- गोविन्द भारद्वाज
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