बिहार : कोरोना से मौत मामलों के फर्जी आंकडे ! पटना हाईकोर्ट ने कहा, गांवों में हुईं मौतों का आंकड़ा दे राज्य सरकार


पटना/बिहार/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। बिहार में विपक्ष के द्वारा कोरोना जांच में फर्जी आंकडे को लेकर सरकारा पर हमला बोला जाता रहा है। इसी कड़ी में सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने कोरोना से हुई मौतों के आंकड़ों के सही संकलन के लिए अब लोक प्रतिनिधियों को इसकी जिम्मेदारी दी है। हाईलोर्ट के आदेशानुसार अब राज्य के सभी पंचायती राज संस्थान इसके लिए जिम्मेदार होंगे। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल की खंडपीठ ने शिवानी कौशिक सहित अन्य की लोकहित याचिकाओं की सुनवाई की।

पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने राज्य की सभी पंचायतों के मुखिया, उप मुखिया, ब्लॉक प्रमुख, उप प्रमुख और तमाम जिला परिषद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में हुई मौतों की जानकारी 24 घंटे के अंदर नजदीकी जन्म व मृत्यु निबंधन अधिकारियों को दें। ताकि सरकारी अफसरों को यह पता लगाने में सहूलियत हो कि राज्य में हुई मौतों में कितनी कोरोना के कारण हुई है। 

कोर्ट ने यह हिदायत भी दी है कि यदि कोई भी लोक-प्रतिनिधि अपने क्षेत्र में हुई मौत की जानकारी नहीं देते हैं तो इसे उनकी कर्तव्यहीनता माना जाएगा। ऐसे प्रतिनिधियों को कर्तव्यहीनता के आधार पर पंचायती राज कानून के तहत हटा दिया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि बिहार के गांव-गांव में कोरोना टेस्टिंग से लेकर आइसोलेशन, दवा आदि की व्यवस्था यह तभी संभव होगी जब पंचायत प्रतिनिधियों को कोरोना से लडने की मुहिम में शामिल किया जाएगा। 

हाईकोर्ट ने कहा कि यही पंचायत प्रतिनिधि क्षेत्र के भूगोल से वाकिफ होते हैं। उन्हें अपने इलाके की जानकारी होती है। इसलिए सभी मुखिया, प्रमुख व अध्यक्ष को इसमें कर्तव्य निर्वहन करने का आदेश दिया गया है। कोर्ट के इस निर्देश का अनुपालन कैसे और किस हद तक किया गया है, इसकी जानकारी सरकार को 17 मई की सुनवाई में बताना है।

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर से निपटने के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी जाए। इसके लिए गांव-गांव तक मरीजों के इलाज की आधारभूत संरचना बनाई जाए। खण्डपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि पूरा राज्य मेडिकल इमरजेंसी के दौर से गुजर रहा है और यहां लॉकडाउन भी लगा हुआ है। 2011 की जनगणना के हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि इस राज्य की 90 फीसदी जनता ग्रामीण इलाकों में बसती है और ऐसी बात नहीं कि कोरोना सिर्फ शहरी लोगों को ही होता है। 

दूसरी लहर ने पूरे राज्य में त्राहिमाम मचा दिया है और राष्ट्रीय स्तर पर तीसरी लहर भी आने वाली है। जहां कोविड के पहले लहर में करीब 40 लाख प्रवासी, बिहार लौटे थे, उनमें कितने रह गए या दूसरी लहर में और कितने लौटे, कितनों को संक्रमण हुआ, कितने ग्रामीणो की कोरोना से मौत हुई? इन आंकडों को इक्कठा कर के ही हर गांव में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा सकता है, ताकि पूरा राज्य तीसरे लहर से लड़ने के लिए तैयार रहे। 

उल्लेखनीय है कि कोरोना संक्रमण की मौजूदा दूसरी लहर युवाओं पर तेजी से वार कर रही है। वहीं, तीसरी लहर में बच्चों पर भी इसका असर पडने की आशंका जताई जा रही है। पटना सहित पूरे बिहार की करीब 12 करोड से अधिक चिह्नित आबादी में से 18 से कम आयु वर्ग के करीब साढे तीन करोड बच्चे और किशोर हैं। बच्चों के मामले बढने पर राजधानी पटना के पीएमसीएच, आइजीआइएमएस, एम्स, एनएमसीएच जैसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों पर ही अधिक निर्भरता रहेगी। 

इसे देखते हुए जिले की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में भी गंभीर शिशुओं के उपचार की व्यवस्था पहले से ही करने की आवश्यकता है। बता दें कि बिहार में कोरोना के मामले चिंता जनक हो गए थे। संक्रमण की चेन बढती जा रही थी। लेकिन लॉकडाउन लगने थोडी राहत मिली है। इसको देखते हुए राज्य में बंदिशें 25 मई तक बढा दी गई हैं। ऐसे में तीसरी लहर को देखते हुए पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को पहले ही निर्देश दे दिए हैं।

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