कविता : रूठ कर ना छोड़...










कविता


रूठ कर ना छोड़...

क्यूं खटेगा मुफ्त में नित बेवजह आराम कर,

खूब होंगी मिन्नतें तब अन्नदाता काम कर॥

रूठ कर ना छोड़ खेती जोत ले तू खेत को,

छा रही काली घटायें उठ खड़ा हो बीज बो

फूटने लग जाये कोंपल धान उपजाए जमीं,

खिल उठेंगे फूल मुख पे आंख में क्यूं है नमी॥

बैल तेरे ताकते तू हाथ फेरेगा कभी,

क्यूं बने नादान फसलें लहलहायेंगी अभी,

हो ख़तम तेरा तमस घट जाये दुख की बदलियां,

भोर होगी खुशनुमा सूरज बिखेरे रश्मियां॥

भूल जा पिछली तबाही भूख सूखा बारिशें,

रोक ले आंसू पलक में ख़त्म होंगी गर्दिशें,

मोल तेरा जान जाएगा जगत इक रोज तो,

हक़ मिलेगा पूर्ण तुझको माफ़ कर दे भूल को॥

- रोचिका अरुण शर्मा

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