आया जून
हंसता-गाता अफ़लातून, आया गरम महीना जून।
उच्च ताप पर लगा पहुंचने, अब शरीर का सारा ख़ून।
ऐसी-तैसी करने निकली, लू के अंदर भरा जुनून।
दिन में करतीं तंग मक्खियां, रात को मच्छर टेलीफून।
अक्कड़-बक्कड़ भुलवाता-सा, सूरज रहा सभी को भून।
सनन-सनन कर घूमे घर-घर, भोला-सा पंखा बातून।
ज़्यादा से ज़्यादा जल पीना, मिले देह को तभी सुकून।
कम से कम तुम कपड़े पहनो, गरमी ने भेजा मज़मून।
- घमंडीलाल अग्रवाल
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