बाल कविता : धरती-आकाश

बाल कविता








धरती-आकाश

पेड़-पौधे कट रहे, आसमां है धुंआ-धुंआ।

नदी निर्झर ताल पोखर, रह गए हैं अब कहां?

ची-ची करती गौरैया का, कोई अता-पता नहीं।

तितली-भंवरें, झींगुर-पपीहे, गिद्ध दूर तक दिखा नहीं।

सड़कों पर चिल्लम-चिल्ली, शोर भी पुरज़ोर है।

प्रकृति का महातांडव, दिख रहा घनघोर है।

सोच लो विचार लो, थाम लो विनाश को।

प्राणवायु तब मिलेगी, प्राण दो धरती-आकाश को।

- नरेन्द्र सिंह नीहार

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