कोरोना : अल्फा वैरिएंट की तुलना में डेल्टा वैरिएंट 40-60 फीसदी अधिक संक्रामक


नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। कोरोना वायरस की तीसरी लहर की आशंका के कारण देश में एक बार फिर चिंताएं बढ़ रही है। इस बीच इंडियन सार्स-कोव-2 जेनोमिक्स कॉन्सॉर्टियम (INSACOG) के सह अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा ने डेल्टा वैरिएंट को लेकर बड़ा बयान दिया है। एनके अरोड़ा के मुताबिक डेल्टा वैरिएंट (B.1.617.2) कोरोना के एल्फा वैरिएंट से ज्यादा तेजी से फैल रहा है। 

एक इंटरव्यू में अरोड़ा ने वैरिएंट की जांच और उसके व्यवहार के हवाले से मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के बारे में चर्चा की। यह जांच यह जानने के लिए की गई है कि डेल्टा वैरिएंट इतना संक्रामक क्यों है। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह जेनोमिक निगरानी के जरिए इसे फैलने से रोका गया। उन्होंने फिर जोर देकर कहा कि कोविड उपयुक्त व्यवहार बहुत अहमियत रखता है। रिसर्च के मुताबिक अगर ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण हो तो कोरोना के किसी भी वैरिएंट को आसानी से हराया जा सकता है।

डॉ. एनके अरोड़ा के मुताबिक डेल्टा वैरिएंट कोरोना के पिछले वैरिएंट एल्फा से 40 से 60 फीसदी तेजी से फैलता है। स्टडी में ये सामने आया है कि डेल्टा वैरिएंट के कारण लंग और अन्य अंगों में अधिक प्रभाव होता है। इस वैरियंट में ऐसे कुछ म्यूटेशन हैं, जो संक्रमित कोशिका को अन्य कोशिकाओं से मिलाकर रुग्ण कोशिकाओं की तादाद बढ़ाते जाते हैं। इसके अलावा जब ये मानव कोशिका में घुसपैठ करते हैं, तो बहुत तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं। इसका सबसे घातक प्रभाव फेफड़ों पर पड़ता है। बहरहाल यह कहना मुश्किल है कि डेल्टा वैरियंट से पैदा होने वाली बीमारी ज्यादा घातक होती है। वहीं, डेल्टा प्लस को लेकर डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा कि देश में अभी इसके 55-60 केस सामने आए हैं, जो कुल 11 राज्यों में हैं। अभी इस वैरिएंट पर स्टडी की जा रही है। वहीं वैक्सीन को लेकर आईसीएमआर द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार पता चला है कि वर्तमान में दी जाने वाली कोरोना वैक्सीन डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ प्रभावी हैं।

डेल्टा वैरिएंट इतना घातक क्यों है?
कोरोना के बी.1.617.2 को डेल्टा वैरिएंट कहा जाता है। पहली बार यह भारत में अक्टूबर 2020 में मिला था। हमारे देश में दूसरी लहर के लिए यही प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। आज नए कोविड-19 के 80 प्रतिशत मामले इसी वैरिएंट की देन हैं। यह महाराष्ट्र में उभरा और वहां से पश्चिमी राज्यों से होता हुआ उत्तर की ओर बढ़ा। फिर देश के मध्य भाग और पूर्वोत्तर राज्यों में फैला। यह म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन से बना है, जो उसे एसीई2 रिसेप्टर से चिपकने में मदद करता है। एसीआई2 रिसेप्टर कोशिकाओं की सतह पर मौजूद होता है, जिनसे यह मजबूत से चिपक जाता है। इसके कारण यह ज्यादा संक्रामक हो जाता है और शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने में सफल हो जाता है। यह अपने पूर्ववर्ती अल्फा वैरिएंट से 40-60 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक है।

क्या महामारी की भावी लहरों को रोका जा सकता है?
अरोड़ा ने कहा कि वायरस ने आबादी के उस हिस्से को संक्रमित करना शुरू किया है, जो सबसे जोखिम वाला है। संक्रमित के संपर्क में आने वालों को भी वह पकड़ता है। आबादी के एक बड़े हिस्से को संक्रमित करने के बाद वह कम होने लगता है और जब संक्रमण के बाद पैदा होने वाली रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है, तो वह फिर वार करता है। अगर नए और ज्यादा संक्रमण वाले वैरिएंट पैदा हुए, तो मामले बढ़ सकते हैं। दूसरी लहर अभी चल रही है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीके लगें, लोग कड़ाई से कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करें और जब तक हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से को टीके न लग जाएं, हम सावधान रहें, तो भावी लहर को नियंत्रित किया जा सकता है और उसे टाला जा सकता है।

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