ओलंपिक : बेटी की जीत की खुशी, रुक ही नहीं रहे मां के आंसू



नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। मीराबाई चानू के ऐतिहासिक रजत पदक और उनकी मधुर मुस्कान के अलावा शनिवार को इस भारोत्तोलक के शानदार प्रदर्शन के दौरान उनके कानों में पहनी ओलंपिक के छल्लों के आकार की बालियों ने भी ध्यान खींचा जो उनकी मां ने पांच साल पहले अपने जेवर बेचकर उन्हें तोहफे में दी थीं। मीराबाई की मां को उम्मीद थी कि इससे उनका भाग्य चमकेगा। रियो 2016 खेलों में ऐसा नहीं हुआ, लेकिन मीराबाई ने आज सुबह तोक्यो खेलों में पदक जीत लिया और तब से उनकी मां सेखोम ओंग्बी तोम्बी लीमा के खुशी के आंसू रुक ही नहीं रहे हैं।

लीमा ने मणिपुर में अपने घर से कहा, ‘मैंने बालियां टीवी पर देखी थीं, मैंने ये उसे 2016 में रियो ओलंपिक से पहले दी थी। मैंने मेरे पास पड़े सोने और अपनी बचत से इन्हें बनवाया था, जिससे कि उसका भाग्य चमके और उसे सफलता मिले।' 

उन्होंने कहा, ‘इन्हें देखकर मेरे आंसू निकल गए और जब उसने पदक जीता तब भी। उसके पिता (सेखोम कृति मेइतेई) की आंखों में भी आंसू थे। खुशी के आंसू। उसने अपनी कड़ी मेहनत से सफलता हासिल की।' 

मीराबाई को तोक्यो में इतिहास रचते हुए देखने के लिए उनके घर में कई रिश्तेदार और मित्र भी मौजूद भी मौजूद थे। मीराबाई ने महिला 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक के साथ ओलंपिक में भारोत्तोलन पदक के भारत के 21 साल के इंतजार को खत्म किया और तोक्यो खेलों में भारत के पदक का खाता भी खोला।

मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 25 किमी दूर मीराबाई के नोंगपोक काकचिंग गांव में स्थित घर में कोविड-19 महामारी के कारण कर्फ्यू लागू होने के बावजूद शुक्रवार रात से ही मेहमानों का आना-जाना लगा हुआ था। मीराबाई की तीन बहनें और दो भाई और हैं।

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