बक्सवाहा जंगल मामला : एनजीटी ने कहा- बिना वन विभाग की अनुमति के न काटा जाए एक भी पेड़




डॉ. पीजी नाजपांडे द्वारा लगाई गई दो अलग-अलग याचिकाओं को मर्ज कर 
यह फैसला सुनाया
भोपाल/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। राष्ट्रीय हरित अधिकरण भोपाल ने छतरपुर जिले के बक्सवाहा में संरक्षित वन क्षेत्र में 2.15 लाख पेड़ों को काटने के संबंध में लगी दो याचिकाओं पर निर्देश दिया कि बिना वन विभाग की अनुमति के एक भी पेड़ न काटा जाए। अधिकरण ने वन संरक्षण कानून 1980 का पालन कराने, टीएन गोधावर्मन कमेटी की गाइडलाइन का अनुसरण करने और भारतीय वन अधिनियम 1927 के नियमों के तहत कार्रवाई करने के लिए भी कहा है।

एनजीटी की डबल बेंच में गुरुवार को जस्टिस श्योकुमार सिंह व अरुण कुमार वर्मा ने संयुक्त रूप से यह फैसला सुनाया है। मालूम हो कि इस संबंध में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में एलएलबी द्वितीय वर्ष के छात्र उज्ज्वल शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. पीजी नाजपांडे द्वारा लगाई गई दो अलग-अलग याचिकाओं को मर्ज कर यह फैसला सुनाया गया। इस मामले पर सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा गया है। अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी।

बक्सवाहा के 382.131 हेक्टेयर के वन क्षेत्र में एस्सेल माइनिंग इंडस्ट्रीज लिमिटेड के नेतृत्व में बंदर हीरा खदान प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी दी जानी है जो आदित्य बिड़ला समूह की एक इकाई है। माना जा रहा है कि अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो यह एशिया की सबसे बड़ी हीरा खदान बन सकती है। हालांकि इस परियोजना से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर चिंताएं पूरे देश में पर्यावरणविदों द्वारा उठाई जा रही हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस परियोजना के लिए प्रति वर्ष लगभग 5.3 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होगी। छतरपुर क्षेत्र में पहले से मौजूद पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए परियोजना के लिए पानी की अत्यधिक उच्च मांग अंतत: पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बनेगी और उस क्षेत्र के वनस्पतियों व जीवों के लिए खतरा बन सकती है।

सुनवाई के दौरान प्रतिपक्ष ने तर्क दिया कि पर्यावरण मंजूरी और वन मंजूरी अभी तक केंद्र सरकार द्वारा प्रदान नहीं की गई है। हालांकि, एस्सेल माइनिंग इंडस्ट्रीज लिमिटेड को ट्रिब्यूनल द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है कि वन विभाग की अनुमति के बिना किसी भी पेड़ को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।

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