सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बिना आरोप तय 11 साल से बंद आरोपित को सजा दो या बरी करो

1993 में ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के मामले में फैसले में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई 

नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। वर्ष 1993 में कई राजधानी एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के मामले में एक आरोपित हमीर उईउद्दीन को बिना आरोप तय किए 11 साल से जेल में बंद रखने पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'उसे सजा दो या बरी करो।' त्वरित सुनवाई के अधिकार को रेखांकित करते हुए शीर्ष अदालत ने आतंकी एवं विध्वंसक गतिविधियां रोकथाम कानून (टाडा) के तहत अजमेर की विशेष अदालत के जज से रिपोर्ट तलब की है। इसमें उन्हें बताना है कि आरोपित उईउद्दीन के खिलाफ अभी तक आरोप तय क्यों नहीं हुए हैं।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने विशेष अदालत के जज को आदेश की प्रति मिलने की तारीख से दो हफ्ते के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। अपने हालिया आदेश में पीठ ने कहा कि रिपोर्ट जल्द से जल्द दाखिल करने में मदद करने के लिए रजिस्ट्रार (ज्यूडिशियल) आदेश की प्रति सीधे जज को भेजेंगे साथ ही एक प्रति राजस्थान हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार (ज्यूडिशियल) के जरिये भेजी जाएगी।

सुनवाई के दौरान उईउद्दीन की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब आलम ने कहा कि याचिकाकर्ता 2010 से हिरासत में है, अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं और सुनवाई अभी शुरू होनी है। बिना मुकदमा चलाए आरोपित को अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखना अनुच्छेद-21 के तहत व्यक्ति के अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि विशेष टाडा अदालत को याचिकाकर्ता को जमानत देनी चाहिए थी क्योंकि निकट भविष्य में सुनवाई का निष्कर्ष निकलने की कोई संभावना नहीं है।

राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता विशाल मेघवाल ने माना कि आरोपित के खिलाफ अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं, उन्होंने दलील दी कि वह करीब 15 साल तक फरार था। इस पर पीठ ने पूछा, जब वह 2010 से हिरासत में है तो आरोप क्यों तय नहीं हुए। वह त्वरित सुनवाई का हकदार है। उसे सजा दो या बरी करो। हमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन कम से कम मुकदमा तो चलाओ। बिना मुकदमा चलाए उसे अनिश्चितकाल के लिए हिरासत में नहीं रखा जा सकता।

मेघवाल ने कहा कि आरोप तय करने में देरी की मुख्य वजह यह है कि एक सह-आरोपित अब्दुल करीम टुंडा गाजियाबाद की जेल में बंद है। पीठ ने कहा, या तो आप मुकदमे को अलग कर दीजिए या मुकदमे को उसके केस से जोड़ दीजिए, लेकिन मुकदमा शुरू कीजिए। आलम ने कहा कि राज्य ने अपने जवाबी हलफनामे में टुंडा के केस का उल्लेख नहीं किया है।

उईउद्दीन ने विशेष टाडा अदालत के 27 मार्च, 2019 के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। अभियोजन के मुताबिक, पांच-छह दिसंबर, 1993 को बांबे-नई दिल्ली, नई दिल्ली-हावड़ा और हावड़ा-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस; सूरत-बड़ौदा फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस और हैदराबाद-नई दिल्ली एपी एक्सप्रेस ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए थे। इसमें दो यात्रियों की मौत हुई थी और 22 अन्य घायल हुए थे।

इस मामले में 25 अगस्त, 1994 को सीबीआई ने 13 गिरफ्तार और नौ फरार आरोपितों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। उईउद्दीन को फरार दिखाया गया था। उसे उत्तर प्रदेश पुलिस और लखनऊ स्पेशल टास्क फोर्स ने दो फरवरी, 2010 को गिरफ्तार किया था और अजमेर की विशेष टाडा अदालत में पेश किया था। अदालत ने उसे आठ मार्च, 2010 को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। 

Post a Comment

और नया पुराने