सांसदों और विधायकों के विरुद्ध दर्ज मामले हाईकोर्टों की अनुमति के बिना वापस नहीं ले सकते : सुप्रीम कोर्ट



नेताओं के विरुद्ध दर्ज मामलों की निगरानी के लिए विशेष पीठ की स्थापना पर भी विचार

नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत आरोपी कानून निर्माताओं के विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामलों को लोक अभियोजक, हाईकोर्टों की अनुमति के बिना वापस नहीं ले सकते। 

चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने यह भी कहा कि वह नेताओं के विरुद्ध दर्ज मामलों की निगरानी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष पीठ की स्थापना पर भी विचार कर रही है। पीठ ने आदेश दिया कि सांसदों और विधायकों के विरुद्ध मामले की सुनवाई कर रहे विशेष अदालतों के न्यायाधीशों का अगले आदेश तक स्थानांतरण नहीं किया जाएगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्टों के रजिस्ट्रार जनरलों को निर्देश दिया कि वे कानून निर्माताओं के विरुद्ध उन मामलों की जानकारी, एक तय प्रारूप में सौंपें, जिनका निपटारा हो चुका है। पीठ ने उन मामलों का भी विवरण मांगा है जो निचली अदालतों में लंबित हैं। न्यायालय की सहायता कर रहे वकीलों की रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद पीठ ने आदेश दिया। पीठ, भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2016 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सांसदों और विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई तथा दोषी ठहराए गए नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

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