नई चिंता : स्कूल लौटने वाले छात्रों के लिए सामाजीकरण की फिक्र बन सकती है परेशानी का सबब : विशेषज्ञ


प्रतीकात्मक चित्र


नई दिल्ली। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड महामारी के बुरे प्रभाव को देखते हुए कहा है कि विद्यार्थी लंबे समय तक अपने दोस्तों और शिक्षकों से भौतिक रूप से दूर रहे हैं, ऐसे में स्कूल लौटने पर उनके साथ घुलना-मिलना विद्यार्थियों के लिए चिंता विषय हो सकती है। 

विशेषज्ञों ने रविवार को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कहा कि बच्चों को स्कूलों में वापस लौटने पर बेचैनी का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों ने उनके माता-पिता और शिक्षकों को स्कूलों के फिर से खुलने के बाद बच्चों में एकाग्रता की कमी तथा अचानक गुस्सा आने जैसे चेतावनी के संकेतों पर नजर रखने की सलाह दी है।

महामारी के कारण महीनों तक बंद रहने के बाद कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूल फिर से खुल रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि विद्यार्थी लंबे समय तक अपने दोस्तों और शिक्षकों से भौतिक रूप से दूर रहे हैं, ऐसे में स्कूल लौटने पर उनके साथ घुल-मिल पाने की व्यग्रता उनके लिये चिंता का विषय हो सकती है। 

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘कोरस्टोन' की भारत की उपाध्यक्ष एवं निदेशक ग्रेसी एंड्र्यू ने माता-पिता को सलाह दी कि वे अपने बच्चों को उनके डर को स्वीकार करने और उसका सामना करने दें। 

उन्होंने बताया, ''अक्सर माता-पिता 'डरो मत' या 'बेवकूफी मत करो', ‘डरने की कोई बात नहीं है' जैसी बातें कहकर उनकी भावनाओं को नकार देते हैं। इसके बजाय बच्चों को उनके डर को व्यक्त करने देना चाहिये। इस बात को मानना चाहिये कि चिंता स्वाभाविक है। वास्तव में यह देखना चाहिये कि उन्हें क्या डरा रहा है? क्या अन्य बच्चों के साथ भी ऐसा हो रहा है या क्या यह कोविड की चपेट में आने का डर है ... फिर उन्हें सुरक्षा के बारे में जानकारी प्रदान करें। उन्हें बताएं कि संक्रमित होने पर भी बच्चों के गंभीर रूप से बीमार होने का जोखिम कम है। माता-पिता बच्चों के स्कूल वापस जाने पर हर वक्त उनका साथ देकर उन्हें सहारा दे सकते हैं।''

एंड्र्यू ने कहा कि शिक्षक भी बच्चों को उनके डर को व्यक्त करने दे सकते हैं जो कक्षाओं में कुछ कार्यों के जरिए संभव है। उन्होंने कहा, ''उन्हें वायरस के बारे में जानकारी प्रदान करें ताकि वह इसे समझ सकें। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कक्षा में उनकी उपस्थिति को अनिवार्य न किया जाए। बच्चों को शुरुआत में सप्ताह में कुछ दिन स्कूल आने का विकल्प दिया जाए और फिर जैसे-जैसे वे हालात से सामंजस्य बिठा लें, फिर उनकी उपस्थिति को अनिवार्य किया जाए।''

गुरुग्राम के पारस अस्पताल की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर ने कहा कि माता-पिता बच्चों को सामान्य स्थिति में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा, ''महामारी ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ। सामाजीकरण की चिंता सबसे प्रमुख पहलुओं में से एक है क्योंकि बच्चे लंबे समय तक अपने दोस्तों और शिक्षकों से शारीरिक रूप से दूर रहे हैं। माता-पिता बच्चों को सामान्य अवस्था में वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एकाग्रता की कमी, अचानक गुस्सा आने जैसे चेतावनी के संकेतों पर नजर रखें।' 

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