चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को सार्वजनिक स्थानों पर हुई दुर्घटनाओं के पीड़ितों को देय मुआवजे, अनुग्रह राशि की मात्रा निर्धारित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने इस संबंध में 2012 से दायर कुछ याचिकाओं का निपटारा करते हुए आठ सप्ताह के भीतर दिशा-निर्देश तैयार करने का आदेश दिया। न्यायाधीश ने कहा कि राजनीतिक कारणों समेत अन्य कारणों से एक ही प्रकार की दुर्घटनाओं के लिए संबंधित प्राधिकारों द्वारा मुआवजे की अलग-अलग राशि प्रदान की गई।
एक मामले में सरकारी नौकरी के साथ एक करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया और दूसरे मामले में 50 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया। इसी प्रकार की दुर्घटना के अन्य मामलों में एक लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक का मुआवजा प्रदान किया गया। अदालत ने कहा कि मुआवजे की मात्रा निर्धारित करने का आधार बिल्कुल अस्पष्ट था और यह एक रहस्य बना रहा। इसके पीछे क्या आधार है, इस बारे में जनता को नहीं बताया गया। इसमें पारदर्शिता का अभाव था। संविधान के तहत पारदर्शिता रखना जरूरी है।
अदालत ने कहा कि दुर्घटना में घायल हुए व्यक्ति को भी यह जानने की स्थिति में होना चाहिए कि वास्तविक मुआवजा क्या है जो वे सरकार से प्राप्त करने के हकदार थे। न्यायाधीश ने कहा कि यह ऐसी स्थिति थी जैसे कि अधिकारी अपनी मर्जी और पसंद के आधार पर या राजनीति सहित कुछ अन्य कारणों के आधार पर मुआवजे की मात्रा निर्धारित कर सकते हैं।
न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता 12 सप्ताह के भीतर मुआवजे, अनुग्रह राशि के लिए अपने संबंधित आवेदन सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत करेंगे और उस पर तैयार किए जाने वाले दिशा-निर्देशों के आधार पर विचार किया जाएगा तथा उसके बाद आठ सप्ताह के भीतर निर्णय होना चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा मुआवजे, अनुग्रह राशि का भुगतान योग्य पीड़ितों के लिए विभिन्न अन्य कल्याणकारी कानूनों के तहत बीमा लाभ और मुआवजे का दावा करने से नहीं रोकेगा।
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