ओमिक्रॉन से फिलहाल घबराने के जरूरत नहींः डॉ. मनिंद्र अग्रवाल



नई दिल्ली। ओमिक्रॉन तेजी से फैलने वाला वैरिएंट है। हमारा अब तक का अध्ययन बताता है कि यह डेल्टा से भी दोगुना या उससे भी ज्यादा तेजी से फैलता है। यह थोड़ा चिंतित करने वाली बात है, मगर अभी हमारे पास अधिकांश डाटा दक्षिण अफ्रीका से ही आ रहा है। इसमें राहत की बात यह है कि संक्रमण जितनी तेजी से बढ़ रहा है, उतनी तेजी से मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ रही। इसलिए लग रहा है कि यह डेल्टा की तरह उतना घातक नहीं है, लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अभी पर्याप्त डाटा के लिए अभी इंतजार करना होगा। हफ्ते दस दिन का और डाटा आ जाए तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

अभी तक के अनुमान यही कह रहे हैं कि यह डेल्टा से कम घातक है। इसके साथ ही हमें दो बातें और देखनी होंगी। पहली बात तो यह कि भारत में इस वक्त कोरोना के प्रति नेचुरल इम्युनिटी काफी बड़ी मात्रा में है। यह ऐसे लोगों में होती है, जो पहले संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं। इस वक्त कम से कम 80 फीसद आबादी में नेचुरल इम्युनिटी का अनुमान है।

दूसरा देश में टीकाकरण बड़े पैमाने पर हुआ है। करीब 80 फीसद वयस्कों को कम से कम एक डोज मिल चुकी है। इन दोनों कारणों को जोड़कर देखें तो वायरस के किसी घातक प्रभाव की संभावना और भी कम हो जाती है। जिन लोगों में कुदरती या टीके की इम्युनिटी है, उनमें संक्रमण की संभावना तो रहती है मगर यह ज्यादा घातक नहीं होता।

मगर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अस्पताल में भर्ती करने की नौबत ज्यादातर संक्रमण के दूसरे से तीसरे हफ्ते में आती है। यानी यह डाटा एक से दो हफ्ते पीछे चलता है। इसलिए किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अभी इंतजार करने की जरूरत है। यूरोप का एक उदाहरण है कि एक हॉल में 120 लोग एकत्र हुए थे, सभी को टीके की दोनों खुराक मिल चुकी थीं मगर इनमें से 90 संक्रमित पाए गए।

इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि किसी में भी गंभीर लक्षण नहीं दिखे। विदेश से जो लोग आ रहे हैं,  जिनमें ओमिक्रॉन पाया जा रहा है, वे सभी डबल वैक्सीनेटेड हैं। इन सभी में लक्षण नाम मात्र हैं और आरटी-पीसीआर जांच में वे संक्रमित पाए गए हैं। इनमें लक्षण कम है, इसलिए वे ज्यादा इसे फैला भी नहीं रहे।
 
दक्षिण अफ्रीका के डाटा का हमने अपने सूत्र मॉडल से आकलन किया है। इससे यह प्रकट होता है कि वहां इसका संक्रमण अगस्त महीने में शुरू हो चुका था। वहां की संक्रमण दर यानी बीटा रेट अगस्त के महीने में दो गुना से ज्यादा बढ़कर एक हो गया। इससे लगता है कि वहां अगस्त में तेजी से फैलने वाला कोई वैरिएंट आ गया था। मगर उसके बाद सितम्बर अक्तूबर में दर कम होती गई।

दक्षिण अफ्रीका में भी नेचुरल इम्युनिटी काफी है और यह 80 फीसद के आसपास बताई जाती है। इसलिए वह तब ज्यादा नहीं फैल पाया। अब नवम्बर में यह फिर से फैलना शुरू हुआ मगर ये कुछ नई जगहों पर फैला, जहां इम्युनिटी नहीं थी। अगर भारत की बात करें तो यहां 50 फीसद आबादी को दोनों डोज लग चुकी हैं, 80 फीसद के पास नेचुरल इम्युनिटी भी है तो यहां वायरस को फैलने के लिए बहुत जगह मिलेगी नहीं।

ऐसे में हमारा आकलन बताता है कि अधिक से अधिक यह नए साल के शुरू में कोरोना की पहली लहर जितनी ऊंचाई तक जा सकता है। वह भी तब जब कोई लॉकडाउन और प्रतिबंध न लगाया जाए, लोग जैसे अब घूम रहे हैं, उन्हें वैसे ही घूमने दिया जाए। यानी पिछले साल सितम्बर में पहली लहर में जो अधिकतम एक लाख मामले हर दिन आ रहे थे, वहीं तक पहुंच सकते हैं। लोगों को सतर्कता बरतने की जरूरत है।

लॉकडाउन की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए मगर संख्या बढऩे पर अगर राज्य लॉकडाउन पर जाते हैं तो यह अधिकतम संख्या एक लाख से भी कम रह सकती है। इस तरह ज्यादा चिंता की बात नहीं है। इसलिए ज्यादा प्रतिबंध लगाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही।

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