केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, टीके के लिए किसी को मजबूर नहीं कर सकते


नई दिल्ली। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी कोविड-19 टीकाकरण दिशानिर्देशों में किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसका जबरन टीकाकरण कराने की बात नहीं की गई है। शीर्ष अदालत में दाखिल एक हलफनामे में मंत्रालय ने कहा है कि मौजूदा महामारी की स्थिति को देखते हुए टीकाकरण व्यापक जनहित में है। विभिन्न मीडिया मंचों के माध्यम से यह सलाह दी जा रही है कि सभी नागरिकों को टीकाकरण करवाना चाहिए, हालांकि, किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध टीकाकरण के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता। भारत सरकार और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से जारी दिशानिर्देश संबंधित व्यक्ति की सहमति प्राप्त किए बिना जबरन टीकाकरण की बात नहीं कहते।

केंद्र ने गैर सरकारी संगठन एवारा फाउंडेशन की एक याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह बात कही। याचिका में घर-घर जाकर प्राथमिकता के आधार पर दिव्यांगजनों का टीकाकरण किए जाने का अनुरोध किया गया है। इस मुद्दे पर हलफनामे में कहा गया है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आवश्यकता-आधारित योजना बनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया गया है ताकि ब्लॉक या शहरी क्षेत्र में होम वैक्सीन सेंटर की रणनीति बनाई जा सके।

दिव्यांगजनों को टीकाकरण प्रमाणपत्र दिखाने से छूट देने के मामले पर केंद्र ने कहा कि उसने ऐसी कोई मानक संचालन प्रक्रिया जारी नहीं की है, जो किसी मकसद के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र साथ रखने को अनिवार्य बनाती हो।

12 से 14 साल के बच्चों के लिए मार्च से टीका!

देश में 12 से 14 साल तक के बच्चों के लिए कोविड टीकाकरण मार्च में शुरू हो सकता है। टीकाकरण संबंधी राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के कोविड-19 कार्यसमूह के अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा ने सोमवार को यह बात कही। उन्होंने कहा कि 15-18 वर्ष के आयु वर्ग में अनुमानित 7.4 करोड़ आबादी में से 3.45 करोड़ से अधिक को कोवैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है और उन्हें 28 दिनों में दूसरी खुराक दी जानी है। उनका टीकाकरण हो जाने के बाद, सरकार मार्च में 12-14 वर्ष के आयु वर्ग के लिए टीकाकरण अभियान शुरू करने पर नीतिगत फैसला कर सकती है। इस बीच, सोमवार को इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गयी है।

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