कविताएं
1.
रिश्तों की पृथ्वी का दरकना
भूचाल की तरह
कभी भी संभव है।
2.
बिना आवाज़ के लगी चोटें
बहुत गहरे तक
टीस देती चली जाती हैं।
3.
आज अपने ही पंख भारी हुए
महसूस कर रहा हूं
फिर भी उड़ान
भरने को तैयार हूं।
4.
अहं, अन्तत:
ऊर्जा का हनन करता है
औ’ मनुष्य को
पंगु बना डालता है।
5.
ढलान पर, अकेले
कौन
हाथ थामता है...?
- मोहन सपरा
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