दादू जी
एक रोज इक बच्ची आई हो गुस्से में लाल,
बेरहमी से खींचे उसने दादू जी के गाल।
बोली नूडल नहीं खिलाते, चाकलेट से बरजें,
आइसक्रीम जो मांगें हम तो, इनकारी में गरजें।
टाफ़ी मुंह में डाले दादू ,मुद्दत हो गई हमको,
किसे सुनाएं बोलो जाकर हम अपने इस ग़म को।
दादू बोले भले-बुरे का तुमको ज्ञान नहीं है,
चाकलेट, नूडल, टाफ़ी, अच्छा सामान नहीं है।
जो भी इनको खाता, हो जाता बीमार वही है,
बड़े-बुजुर्गों ने बच्चों के हित की बात कही है।
ज्ञान-ध्यान की बातें दादू रखो अपने पास,
हम बच्चों को ऐसी बातें कब आती हैं रास।
चाकलेट नूडल वा टाफ़ी दिलवा दो तत्काल,
वरना खींच-खींच गालों को मैं कर दूंगी लाल।
होश ठिकाने आ गये सुनकर नन्हीं की ललकार,
सोचा भला उसी में जिससे बुझी रहे तकरार।
झट दिलवा दी चीजें सारी जो भी मांगी उसने,
बाल हठ के आगे घुटने टेके ना किस किसने।
- ईश्वर चन्द गर्ग
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