मद्रास उच्च न्यायालय : ‘इडियट’ के दायरे में मानसिक रूप से मंद बुद्धि लोग भी शामिल


चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय को हाल ही में बताया गया कि अंग्रेजी शब्द ‘इडियट’ के दायरे में मानसिक रूप से मंद बुद्धि लोग भी आते हैं। न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दोज ने इस परिभाषा को स्वीकार भी कर लिया। न्यायाधीश ने 1865 के लेटर्स पेटेंट के खंड 17 के तहत मानसिक रूप से मंद एक व्यक्ति के संरक्षक के रूप में सी. रघुरमन को नियुक्त किया।

उन्हें मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति आर. बालाजी और उनकी संपत्तियों की देखभाल करनी है। याचिका पर अंतिम बहस के दौरान रघुरमन के अधिवक्ता ने न्यायाधीश से कहा कि लेटर्स पेटेंट के खंड 17 के अनुसार ‘ब्लैक लॉ शब्कोश’ में पाई गई 'इडियट' की परिभाषा में ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो मानसिक रूप से मंद हैं, जैसे कि इस मामले में याचिकाकर्ता 60 प्रतिशत मानसिक मंदता से पीड़ित है। एकल न्यायाधीश ने वर्ष 2013 में माना था कि संरक्षक नियुक्त करने की मांग करने वाली याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं थीं।

न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और एकाधिक विकलांगता अधिनियम, 1999 और व्यक्तियों के कल्याण के लिए गठित राष्ट्रीय ट्रस्ट की धारा 14 के तहत संबंधित वैधानिक प्राधिकरण से संपर्क करने का निर्देश दिया था।

तब से उच्च न्यायालय से जुड़ी रजिस्ट्री ऐसी किसी भी याचिका पर विचार करने से इनकार कर रही थी, लेकिन अब न्यायाधीश ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों को सुनने के साथ-साथ अन्य दलीलों और उपलब्ध साक्ष्य (माता-पिता के मृत्यु प्रमाण पत्र और चिकित्सा प्रमाण पत्र) पर विचार करने के बाद अनुमति दे रहे हैं।

हालांकि न्यायाधीश ने कुछ शर्तें भी लगाईं। इस न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षक रजिस्ट्री के समक्ष बालाजी के मृत माता-पिता के स्वामित्व वाली चल और अचल दोनों तरह की संपत्तियों का ब्योरा चार सप्ताह के भीतर देगा। वह हर छह महीने में रजिस्ट्री के समक्ष ब्योरा देगा और विभिन्न बैंकों-वित्तीय संस्थानों में बालाजी की जमा-पूंजी का खुलासा करेगा। यदि बालाजी से संबंधित धन के दुरुपयोग के बारे में किसी न्यायालय या वैधानिक प्राधिकरण को पता चलता है तो उसे उचित जांच के बाद उसकी संरक्षकता रद्द करने का अधिकार है। 

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