उत्सव : बरसाना की लट्ठमार होली 11 मार्च को


नई दिल्ली। होली रंगों, उमंगों और प्रेम का त्योहार है। पूरे भारत में रंगों का यह उत्सव अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। लेकिन बरसाना में खेली जाने वाली लट्ठमार होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। दुनिया के कोने-कोने से लोग इसे देखने आते हैं। खासकर फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। बरसाने की लट्ठमार होली रंगों, फूलों के साथ-साथ डंडों से खेली जाती है। 

नंदगांव के लोग कमर पर फेंटा बांधकर बरसाने की महिलाओं के साथ होली खेलने पहुंचते हैं। इस लट्ठमार होली में महिलाएं पुरुषों पर लाठी बरसाती हैं और वे ढाल का इस्तेमाल कर उनकी लाठियों से बचने की कोशिश करते हैं। बरसाना की विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली का आनंद लेने के लिए लोग दूर-दूर से मथुरा आते हैं।

महिलाएं फगुवा (नेग) वसूलने पुरुषों पर बरसाती हैं लाठी 
ऐसी मान्यता है कि बरसाना में राधा जी का जन्म हुआ था। परंपरा के अनुसार फाल्गुन की शुक्ल पक्ष की नवमी को नंदगांव के लोग होली खेलने बरसाना गांव आते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण बरसाना होली खेलने गये और बिना फगुवा (नेग) दिए ही वापस लौट आए।

राधा जी ने इसके बाद बरसाना की अपनी सभी सखियों को एकत्र किया और बताया कि कन्हैया बिना फगुवा दिए ही लौट गए हैं। इसलिए सभी को नंदगांव चलकर उनसे फगुवा लेना है। अगले दिन सभी गोपियां नंदगांव पहुंची। इस स्वरूप में आज भी ये होली मनाई जाती है।

कहा जाता है कि बरसाना में होली खेलते समय कृष्ण जी दूसरी गोपियों और राधा जी के साथ ठिठोली करते हैं, जिसके बाद सारी गोपियां उन पर डंडे बरसाती हैं। गोपियों के डंडे से बचने के लिए नंदगाव के गोपी लाठी और ढाल का सहारा लेते हैं। इसी लीला का आयोजन आज तक किया जा रहा है। पुरुषों को यहां हुरियारे और महिलाओं को हुरियारन कहा जाता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post