अपने पंख
सभी से सुनता रहा
सीधा बन जीना
बेहद मुश्किल
पर
मुझे टेढ़ा बन जीना
बेहद मुश्किल लगा
सबके अपने पंख
उसी प्रकार उड़ते...
परिणाम उसी प्रकार होते...
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याद आती...
तुम्हारी याद आती
ऐसा लगता
छूट गई ट्रेन...
खड़ा हूं स्टेशन पर
अकेला
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बिना नागा किये
बिना नागा किये
याद करता हूं तुम्हें
फिर भी...
पास...
नहीं हुआ तुम्हारे....
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अपना जाल
महान बनने की चाह
पर
फंस जाता जाल में
शोर मचाता
फिर नये पाप के लिए पश्चाताप
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भीतर की सुगंध
जब मैं मरूं
मेरे अंदर सुगंध
होनी चाहिए...
जब मैं मरूं
मेरे अंदर कविता
होनी चाहिए
जिसके हृदय में प्रेम
वही पढ़ना चाहिए
जब मैं मरूं
नभ साफ होना चाहिए
छोटा-सा बादल चमकीला
होना चाहिए
जब मैं मरूं
मौसम कविता लिखने वाला
होना चाहिए
गिर के भी संभल सके
ऐसे भाव होना चाहिए...
जब मैं मरूं
चेहरा सुंदर होना चाहिए
जीवन जीने पर कितना
आनंद आता
ऐसा होना चाहिए...
- पुरुषोत्तम व्यास
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