नई दिल्ली। पर्यावरण, सामाजिक और कंपनी संचालन (ईएसजी) के क्षेत्र में जरूरी कौशल वाले पेशेवरों की कमी देश के लिये 2050 तक शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते में एक बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों ने यह बात कही।
शोध संस्थान थिंक चेंज फोरम के अनुसार भारत में ईएसजी क्षेत्र में निवेश 30 से 40 अरब डॉलर होने का अनुमान है और इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है।
तेजी से चौतरफा विकास के लिये ईएसजी का अनुपालन करने वालों को उपयुक्त वित्तीय संसाधनों, तकनीकी संसाधनों और पेशवरों और विशेषज्ञों के रूप में मानव संसाधन की जरूरत होगी।
संस्थान ने एक बयान में कहा, ‘‘पहले दो मामलों में प्रगति हुई है, लेकिन ईएसजी विशेषज्ञों और मानव संसाधनों के मामले में तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।’’
थिंक चेंज फोरम द्वारा आयोजित बैठक में भाग लेते हुए परामर्श कंपनी स्कल्प्ट पार्टनर्स के संस्थापक सदस्य और प्रबंध निदेशक कुमार सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘भारत में पिछले कुछ साल से हमने स्थायी वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी के संबंध में कुछ प्रगति देखी है, लेकिन आज हमें वास्तव में कुशल ईएसजी पेशेवरों की एक टीम बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की आवश्यकता है...।’’
लार्सन एंड टुब्रो लि. के ‘कॉरपोरेट सस्टेनेबिलटी’ प्रमुख प्रदीप पाणिग्रही ने भी कहा कि जहां तक ईएसजी लक्ष्यों का संबंध है, सही विशेषज्ञता रखने वाले टीम की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘‘आपको वास्तविक तौर पर विशेषज्ञ बनाने की आवश्यकता है। सिर्फ प्रशिक्षण देने या किसी अन्य क्षमता निर्माण कार्यक्रम को शुरू करने से मदद नहीं मिलती है। आपको कारोबार की बारीकियों को समझने की जरूरत है। तब ही चीजें सही तरीके से काम करती हैं।’’
इंस्टिट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ में पर्यावरण और संसाधन अर्थशास्त्र इकाई की अध्यक्ष और प्रमुख पूर्णमिता दासगुप्ता ने कहा कि बड़ी कंपनियों के लिए ईएसजी जैसे कुछ क्षेत्रों में प्रगति करना आसान हो सकता है, लेकिन छोटी इकाइयों के लिये इस मामले में समस्या हो सकती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण सवाल यह है कि एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम) स्थिति से कैसे निपटते हैं। हम उन्हें वास्तव में ईएसजी के दायरे में कैसे लाते हैं...? ’’
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