कामयाबी : बिना हार्ट सर्जरी के ही दिल के वाल्व की लीकेज को कंट्रोल करने में सफलता


चंडीगढ़। पीजीआई चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने बिना हार्ट सर्जरी के ही दिल के वाल्व की लीकेज को कंट्रोल करने में सफलता प्राप्त की है। ऐसा ‘परक्यूटेनियस अप्रोच’ तकनीक से संभव हो पाया है। इस तकनीक का इस्तेमाल दुनिया के चंद ही मामलों में किया गया है। अब पीजीआई चंडीगढ़ भी इस तकनीक के सफल प्रयोग करने वाला संस्थान बन गया है।

देश में अपनी तरह के पहले केस में पीजीआई के एडवांस कार्डियक सेंटर (एसीसी) के डॉक्टरों की टीम ने नया टीआरआईसी वाल्व यंत्र एक 80 वर्षीय मरीज में इंप्लांट किया है। वह बार-बार हार्ट फेलियर की गंभीर समस्या से पीड़ित था। आयु अधिक होने के कारण मरीज ओपन हार्ट सर्जरी के लिए शारीरिक रूप से काफी कमजोर था। लेकिन इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद अब वह स्वस्थ हो गया और नियमित जांच के दौरान उसमें हार्ट फेलियर की आशंका के लक्षण भी नहीं मिले।

पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हिमांशु गुप्ता के अनुसार इस प्रक्रिया के तहत दिल के विनोस इनफ्लो सिस्टम में दो वाल्व को इंप्लांट किया जाता है। इससे वाल्व की लीकेज कम हो जाती है, दिल बेहतर तरीके से काम करने लगता है। यह वाल्व इंप्लांटेशन परक्यूटेनियस अप्रोच (त्वचा के जरिए) के तहत भी किया जा सकता है। इसमें ओपन हार्ट प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ती।

डाॅ. गुप्ता के मुताबिक इस प्रक्रिया में खतरा कम होता है। साथ ही वह कहते हैं कि इस प्रक्रिया को तभी अपनाया जाना चाहिए जब उच्च स्वास्थ्य इलाज देने के बाद भी मरीज में कोई फर्क न पड़ रहा हो। इस प्रक्रिया से गुजरने वाले मरीज जल्द ठीक होने लगते हैं और लंबी जिंदगी जी पाते हैं।

डॉ. हिमांशु गुप्ता ने बताया कि दिल की दाईं ओर दो चैंबर्स के बीच में ट्राइकसपिड वाल्व में लीकेज के कारण बार बार होने वाला हार्ट फेलियर एक अति दुर्लभ बीमारी है। यह ज्यादातर उम्रदराज लोगों को होती है। इसके अलावा उन लोगों को भी हो सकती है जिनकी पहले वाल्व सर्जरी हुई हो। ऐसे मरीजों के इलाज का विकल्प काफी सीमित होता है और ओपन हार्ट सर्जरी ही होती है। मरीज का वाल्व बदलना ही एक विकल्प बचता है जो काफी हाई रिस्क माना जाता है।

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