एससी/एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- इसे खत्म करने से असंतोष पैदा हो सकता है


नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में मिलने वाला आरक्षण खत्म करने से असंतोष पैदा हो सकता है और इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की जा सकती हैं।

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की पीठ के समक्ष दाखिल हलफनामे में केंद्र ने बताया कि आरक्षण की नीति संविधान और इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के अनुरूप है।

केंद्र ने कहा, ''यदि मामले की अनुमति नहीं दी जाती है, तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को मिलने वाले पदोन्नति में आरक्षण के लाभों को वापस लेने की आवश्यकता होगी। इससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों का प्रत्यावर्तन हो सकता है, उनके वेतन का पुनर्निर्धारण हो सकता है। इसमें उन अनेक कर्मचारियों की पेंशन का पुनर्निर्धारण शामिल है, जो इस बीच सेवानिवृत्त हो सकते हैं।’’

केंद्र सरकार के अनुसार, ''इससे उन्हें भुगतान किए गए अतिरिक्त वेतन / पेंशन की वसूली की जा सकती है। लिहाजा, इसके खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल हो सकती हैं और कर्मचारियों के बीच असंतोष पैदा हो सकता है।''

'सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त'

केंद्र ने अपनी नीति का बचाव करते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है और तर्क दिया कि आरक्षण प्रदान करने से प्रशासनिक व्यवस्था बाधित नहीं होती। सरकार ने कहा है कि वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट प्रणाली के माध्यम से प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित की जाती है, जिसमें प्रत्येक अधिकारी के कार्य, व्यक्तिगत विशेषताओं और कार्यात्मक क्षमता का आकलन किया जाता है।

केंद्र ने अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले 75 मंत्रालयों और विभागों के आंकड़े प्रस्तुत किए और कहा कि कुल 27,55,430 कर्मचारियों में से 4,79,301 एससी, 2,14,738 एसटी हैं। ओबीसी कर्मचारियों की संख्या 4, 57,148 है।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले केंद्र सरकार से सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने से संबंधित समसामयिक आंकड़े बताते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।

न्यायालय ने 28 जनवरी को एससी और एसटी को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए ''कोई भी मानदंड निर्धारित करने'' से इनकार करते हुए कहा था कि उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निर्धारण राज्य के विवेक पर निर्भर करता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायालयों के लिए यह न तो कानूनी रूप से जरूरी है और न ही उचित है कि वे कार्यपालिका को उस क्षेत्र के संबंध में निर्देश या परामर्श जारी करें, जो संविधान के तहत विशेष रूप से उनके क्षेत्र में आता है।

Post a Comment

أحدث أقدم