... तो कांग्रेस के 65 प्लस फॉर्मूले से निपट जायेंगे कमलनाथ और दिग्विजय जैसे कई वरिष्ठ नेता

कांग्रेस के चिंतन शिविर से वरिष्ठ नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें 



जयपुर। उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में पार्टी के लिए कई बड़े फैसले लिए गए हैं। भारतीय जनता पार्टी का सामना करने के लिए संगठन में क्या बदलाव किए जाएं। एक बड़ा फैसला ये है कि पार्टी आने वाले दिनों में अपने 50 फीसदी पद युवाओं के लिए आरक्षित करेगी। लेकिन, इसके अलावा पार्टी ने एक और बड़ा फैसला लिया है। यह है 65 साल से ज्यादा उम्र वाले नेताओं की छुट्टी। लेकिन, यह फैसला विवादों में उलझ गया। लिहाजा, कांग्रेस अध्यक्ष ने इसे दो साल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

पंजाब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अमरिंदर सिंह बरार की अध्यक्षता वाली कांग्रेस की यूथ कमिटी ने पार्टी को नेताओं के लिए 65 साल में रिटायर करने का फॉर्मूला दिया है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस वर्किंग कमिटी (सीडब्ल्यूसी) ने इस सिफारिश को 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद लागू करने का फैसला किया है। पार्टी की युवक कमिटी ने 65 साल में रिटायरमेंट की जो सिफारिश की है, उसको लेकर पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी भी सहमत हैं, लेकिन इसे दो साल के लिए टालना देना ही बेहतर समझा है। कांग्रेस का यह चिंतन शिविर राजस्थान के उदयपुर में आयोजित किया गया है, जो कि 9 साल बाद हुआ है। इस शिविर में गांधी परिवार के अलावा पार्टी के करीब 430 नेताओं ने शिरकत की है।

इस शिविर में पार्टी ने ' 6 मसौदा संकल्प' तैयार किए हैं, जिन्हें 6 कमिटियों के संयोजकों ने सोनिया गांधी को सौंपे हैं। यह समितियां विभिन्न विषयों पर चर्चा के लिए बनाई गई थी, जिनमें राजनीति, संगठन, किसान-कृषि, युवाओं से संबंधित मुद्दे, सामाजिक न्याय, कल्याण और अर्थव्यवस्था शामिल हैं। इस चिंतन शिविर में 50 से कम उम्र के नेताओं को तरजीह दिए जाने का भी रास्ता साफ किया गया, जिनके लिए आरक्षण की घोषणा की गई है। लेकिन, 2024 के चुनाव तक के लिए वरिष्ठ नेताओं को पार्टी की ओर से मोहलत दी गई है। इस शिविर में पार्टी अध्यक्ष ने कई बड़े फैसलों पर मुहर लगाई है, लेकिन एक बड़े फैसले पर अमल फिलहाल टाल दिया है। यह मसला है पार्टी में रिटायरमेंट की उम्र 65 साल फिक्स करने का, जिस पर सोनिया भी सहमत थीं। लेकिन, इस पर हंगामा शुरू हो गया।

65 साल में रिटायरमेंट वाले मुद्दे पर लंबी बहस चली और आखिरकार तय हुआ कि इसपर जल्दीबाजी में फौरन अमल करना सही आइडिया नहीं है। खासकर जब पार्टी के बुरे दिन चल रहे हैं तो बड़े नेताओं को घर का रास्ता दिखाना सही नहीं रहेगा, क्योंकि कई वरिष्ठ नेता तो अपने राज्यों में नेतृत्व दे रहे हैं। अंत में काफी चर्चा के बाद यह फैसला लिया गया कि इस प्रस्ताव को तुरंत लागू करने की जगह इसे 2024 के लोकसभा चुनाव तक स्थगित रखा जाए और उसके बाद इसे धीरे-धीरे लागू किया जाए। वैसे संगठन के भीतर के पदों पर 50 फीसदी युवा नेताओं की नियुक्ति पर सभी वरिष्ठ नेता आमतौर पर सहमत नजर आए हैं।

अगर कांग्रेस पार्टी अभी 65 साल में रिटायर्मेंट के फॉर्मूले को लागू करती तो उसके तमाम बड़े नेताओं की छुट्टी तय थी। इनमें पहली तो खुद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, जो उम्र और स्वास्थ्य कारणों से अध्यक्ष पद एक बार बेटे को सौंपने के बाद मजबूरन अंतरिम अध्यक्ष बनकर 2019 से इसे फिर से संभाले जा रही हैं। इनके अलावा 65 साल वाले फॉर्मूले में जिन नेताओं को घर बैठना पड़ सकता है, उनमें हरियाणा से भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मध्य प्रदेश से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह और हिमाचल प्रदेश से प्रतिभा वीरभद्र सिंह शामिल हैं। ये सभी 65 साल के ऊपर के हैं। इनके अलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पी चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मल्लिकार्जुन खड़गे और पवन बंसल जैसे नेता भी इसी दायरे में आ रहे हैं।

दिलचस्प बात ये है कि इनमें से प्रतिभा वीरभद्र सिंह इसी साल होने वाले हिमाचल विधानसभा चुनाव में, गहलोत और कमलनाथ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में अपने-अपने राज्यों में पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी हैं। पार्टी ने 2024 की डेडलाइन तय की है, जब हरियाणा विधानसभा के चुनाव भी होंगे और हुड्डा ने फिर से सीएम बनने की आस नहीं छोड़ी है। बहरहाल, इन नेताओं के पास दो साल का समय है, लेकिन उसके बाद भी पार्टी इस पर किस हद तक अमल कर पाएगी यह बड़ा सवाल बना रहेगा।

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