अल्पसंख्यकों की पहचान के मामले पर राज्यों में केंद्र के अलग-अलग रुख से सुप्रीम कोर्ट नाराज़, कहा-राज्यों के साथ करें विमर्श



नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य स्तर पर हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की पहचान करने से जुड़े मामले पर केंद्र द्वारा अलग-अलग रुख अपनाए जाने को लेकर मंगलवार को नाराजगी जताई और उसे तीन महीने में इस मामले पर राज्यों के साथ विचार-विमर्श करने का निर्देश दिया। 

इससे पहले, केंद्र ने सोमवार को न्यायालय से कहा था कि अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और इस संबंध में कोई भी निर्णय राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ चर्चा के बाद लिया जाएगा। 

केंद्र ने मार्च में कहा था कि जिन हिंदू समुदायों और अन्य समुदायों की संख्या कम है, उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने या नहीं देने का फैसला राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को करना है। 

जस्टिस एस के कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि इस प्रकार के मामले में एक हलफनामा दाखिल किया गया है कि केंद्र और राज्य, दोनों के पास शक्तियां हैं। पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘बाद में आप कहते हैं कि केंद्र के पास शक्ति है। हमारे जैसे देश में, जहां इतनी विविधता है, हमें अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। ये हलफनामे दाखिल होने से पहले, सब कुछ सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध होता है, जिसके अपने अलग परिणाम निकलते है। इसलिए आप जो कहते हैं, आपको उसे लेकर सावधानी बरतनी चाहिए।''

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने एक ताजा हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें वह पूर्व के हलफनामे से पीछे हटता प्रतीत होता है और हम इसकी सराहना नहीं करते।' 

उसने कहा, ‘पहले हलफनामे में पहले ही एक रुख अपना लिया गया है, लेकिन ताजा शपथपत्र के अनुसार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है... पूर्वोक्त स्थिति के मद्देनजर, यह आवश्यक है कि केन्द्र यथा प्रस्तावित कार्य करे। मामले को 30 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया जाए।' 

पीठ ने सुनवाई से तीन दिन पहले स्थिति रिपोर्ट दाखिल किए जाने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध करने वाले मेघालय के सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन की याचिका पर भी सुनवाई करने से इनकार कर दिया और उससे अभिवेदन के साथ संबंधित प्राधिकारियों से संपर्क करने को कहा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि ये ऐसे मामले हैं, जिनके समाधान की जरूरत है और हर चीज पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता। सुनवाई शुरू होने पर एक कनिष्ठ वकील ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई बाद में करने का अनुरोध किया कि सॉलिसिटर जनरल किसी अन्य अदालत में व्यस्त हैं। 

पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह नहीं समझ आ रहा कि भारत संघ यह तय नहीं कर पा रहा कि उसे क्या करना है। ये सब विचार पहले ही दिए जाने थे। इससे अनिश्चितता पैदा होती है और हमारे विचार किए जाने से पहले चीजें सार्वजनिक मंच पर आ जाती हैं। इससे एक और समस्या खड़ी होती है।'' 

इसके बाद पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यदि केंद्र राज्यों से विचार-विमर्श करना चाहता है तो हमें फैसला करना होगा। यह कहना समाधान नहीं हो सकता कि सब कुछ इतना जटिल है, हम ऐसा करेंगे। भारत सरकार यह जवाब नहीं दे सकती। आप निर्णय लीजिए कि आप क्या करना चाहते हैं। यदि आप उनसे विचार-विमर्श करना चाहते हैं तो कीजिए। आपको ऐसा करने से रोक कौन रहा है?'' 

न्यायालय ने कहा, ‘‘इन मामलों के समाधान की आवश्यकता है। अलग-अलग रुख अपनाने से कोई फायदा नहीं होगा। यदि विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है तो हलफनामा दाखिल करने से पहले ही यह काम हो जाना चाहिए था।' 

शीर्ष अदालत ने पूर्व में केंद्र को उस याचिका का जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के आदेश देने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। 

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 की धारा-2 सी के तहत छह समुदायों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया है। 

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘रिट याचिका में शामिल प्रश्न के पूरे देश में दूरगामी प्रभाव हैं और इसलिए हितधारकों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बिना लिया गया कोई भी फैसला देश के लिए एक अनापेक्षित जटिलता पैदा कर सकता है।''

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