कांग्रेस : भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति गंभीर चिंता का विषय


उदयपुर/राजस्थान। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर ‘गंभीर चिंता’ जताते हुए कहा कि वैश्विक और स्थानीय घटनाक्रमों के मद्देनजर यह जरूरी हो गया है कि उदारीकरण के 30 साल के बाद अब आर्थिक नीतियों को फिर से तय करने पर विचार किया जाए।

समन्वय समिति की बैठक में हुई चर्चा से निकले निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए चिदंबरम ने कहा, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। पिछले आठ वर्षों में धीमी आर्थिक विकास दर केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार की पहचान रही है।’’

पूर्व वित्त मंत्री ने केंद्र सरकार से यह आग्रह भी किया कि राज्यों की खराब वित्तीय स्थिति के मद्देनजर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की क्षतिपूर्ति की मीयाद अगले तीन वर्षों के लिए और बढ़ा दी जाए। उन्होंने कहा कि अब केंद्र एवं राज्यों के राजकोषीय संबंधों की भी समग्र समीक्षा किए जाने की जरूरत है।

कांग्रेस के चिंतन शिविर के लिए गठित अर्थव्यवस्था संबंधी समन्वय समिति के संयोजक चिदंबरम ने संवाददाताओं से बातचीत में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘‘उदारीकरण के 30 वर्षों के बाद यह महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक और स्थानीय घटनाक्रमों को देखते हुए आर्थिक नीतियों को फिर से तय करने के बारे में विचार करने की जरूरत है।’’

पूर्व वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि आर्थिक नीतियों को फिर से तय करने की उनकी मांग का यह मतलब कतई नहीं है कि कांग्रेस उदारीकरण से पीछे हट रही है, बल्कि उदारीकरण के बाद पार्टी आगे की ओर कदम बढ़ा रही है।

उन्होंने दावा किया, ‘‘महामारी के बाद अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार बहुत साधारण और अवरोध से भरा रहा है। पिछले पांच महीनों के दौरान समय समय पर 2022-23 के लिए विकास दर का अनुमान कम किया जाता रहा है।’’

चिदंबरम ने कहा कि महंगाई अस्वीकार्य स्तर पर पहुंच गई है और आगे भी इसके बढ़ते रहने की आशंका है। उनके मुताबिक, रोजगार की स्थिति कभी भी इतनी खराब नहीं रही, जितनी आज है।


उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पेट्रोल-डीजल पर कर बढ़ाकर और जीएसटी की उच्च दर रखने जैसी अपनी ‘गलत नीतियों’ से महंगाई की आग में घी डालने का काम कर रही है।

चिदंबरम ने जीएसटी के बकाये का उल्लेख करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्यों के बीच के राजकोषीय संबंधों की समग्र समीक्षा की जाए।

उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि राज्यों की खराब हालात को देखते हुए उन्हें जीएसटी की क्षतिपूर्ति करने की मीयाद अगले तीन वर्षों के लिए बढ़ा दी जाए जो आगामी 30 जून को खत्म हो रही है।

एक सवाल के जवाब में पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास पूरी तरह खत्म हो चुका है।

पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘भारत सरकार महंगाई का ठीकरा कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी पर नहीं फोड़ सकती। महंगाई में बढ़ोतरी यूक्रेन युद्ध शुरू होने के पहले से हो रही है।’’ उनके मुताबिक, यह ‘असंतोषजनक बहाना’ है कि यूक्रेन संकट के कारण महंगाई बढ़ रही है।

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘बाहरी हालात से अर्थव्यवस्था पर दबाव में बढ़ोतरी जरूर हुई है, लेकिन सरकार इसको लेकर बेखबर है कि इन हालात से कैसे निपटा जाए। पिछले सात महीनों में 22 अरब डॉलर देश से बाहर चले गए। विदेशी मुद्रा भंडार में 36 अरब डॉलर की कमी आ गई है। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरकर 77.48 रुपये तक पहुंच गई।’’

चिदंबरम के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था और कार्यबल को 21सदी में काम करने के तरीकों के अनुकूल बनाने की जरूरत है तथा जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर आर्थिक नीतियों में जरूरी बदलाव भी किया जाना चाहिए।

गेहूं के निर्यात पर रोक के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि केंद्र सरकार पर्याप्त गेहूं खरीदने में विफल रही है...यह एक किसान विरोधी कदम है। मुझे हैरानी नहीं है क्योंकि यह सरकार कभी भी किसान हितैषी नहीं रही है।’’

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