नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाना दुर्भाग्य से अब एक नया ‘‘फैशन’’ बन गया है और कोई न्यायाधीश जितने अधिक मजबूत होते हैं, उनके खिलाफ आरोप उतना ही बड़ा होता है। शीर्ष न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा अवमानना का दोषी पाये गये एक वकील की ओर से दायर अपील की सुनवाई करते हुए पाया कि उत्तर प्रदेश में न्यायाधीशों के खिलाफ धड़ल्ले से आरोप लगाये जाते हैं और अब यह बंबई और मद्रास में भी हो रहा है।
मद्रास उच्च न्यायालय ने वकील को दो हफ्ते की साधारण कैद की सजा सुनाई थी। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वादी का कृत्य ‘‘पूरी तरह से अवमाननापूर्ण है’’ और उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने वाले उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ लगाये गये अकारण आरोप के अलावा, उसके बाद कार्यवाही की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों में से एक को मामले की सुनवाई से अलग करने की मांग पूरी तरह से बेबुनियाद थी।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की अवकाश पीठ ने कहा, ‘‘अब न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाना दुर्भाग्य से एक नया ‘फैशन’ बन गया है। न्यायाधीश जितने अधिक मजबूत होते हैं, उनके खिलाफ आरोप उतना ही बड़ा होता है। यह अब बंबई में हो रहा है। बेशक, यह उत्तर प्रदेश में धड़ल्ले से हो रहा है, अब मद्रास में भी होने लगा है। ’’
पीठ ने कहा, ‘‘एक मजबूत संदेश देना होगा। ’’ शीर्ष न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों पर देश भर में हमले हो रहे हैं और जिला न्यायपालिका में उनकी सुरक्षा के लिए कभी-कभी एक लाठीधारी पुलिसकर्मी तक नहीं होता।’’
पीठ ने उच्च न्यायालय के इस साल मार्च के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें यह निर्देश भी दिया गया था कि वकील अदालत में एक साल तक प्रैक्टिस नहीं करेगा।
पीठ ने कहा कि वकील के खिलाफ न्यायाधीश के गैर जमानती वारंट जारी होने के बाद पुलिस उसे तामील करने गई, तब वह (वकील) उच्च न्यायालय के पास चाय की एक दुकान पर था। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वहां सैकड़ों वकीलों ने पुलिस को घेर लिया और वारंट तामील नहीं करने दिया। पीठ ने कहा कि जब अदालत ने विषय की सुनवाई की तब वकील ने अपने खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने वाले न्यायाधीश के खिलाफ आरोप लगाये। वकील की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा कि वकील ने बेशर्त माफी मांग ली है।
पीठ ने कहा कि वादी वकीलों के एक ऐसे वर्ग से है जिन्हें नियंत्रित करना मुश्किल है और जो कानून के नाम पर एक धब्बा है। पीठ ने कहा कि इस तरह के लोगों से निपटने के लिए यही एकमात्र तरीका है और दो हफ्ते की कैद असल में बहुत हल्की सजा है। जब अधिवक्ता ने पीठ से कुछ पंक्तियों को रिकार्ड में नहीं डालने का अनुरोध किया तब शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह एक फौजदारी अपील का निस्तारण कर रहा है। पीठ ने कहा, ‘‘वकील भी कानून की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। हम सभी देश के नागरिक हैं। ’’
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