महंगाई डायन : 3.59 करोड़ आम ग्राहकों ने भी नहीं भराया एक भी गैस सिलेंडर - आरटीआई



नई दिल्ली। रसोई गैस की बढ़ती महंगाई के बीच सूचना के अधिकार से खुलासा हुआ है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तीन तेल मार्केटिंग कंपनियों के कुल 3.59 करोड़ घरेलू गैस कनेक्शन धारकों ने पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान एक भी सिलेंडर नहीं भराया। वहीं, 1.20 करोड़ ग्राहकों ने पूरे साल में केवल एक सिलेंडर भराया। गौर करने वाली बात है कि ये ग्राहक गरीब परिवारों की महिलाओं के लिए चलाई जा रही प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) से नहीं जुड़े हैं। पीएमयूवाई के तहत ग्राहकों को सरकारी सब्सिडी वाले घरेलू गैस सिलेंडर प्रदान किए जाते हैं। 
 
नीमच के आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ के मुताबिक उन्हें घरेलू गैस ग्राहकों से संबंधित जानकारी सूचना का अधिकार कानून के तहत मिली है। जानकारी के मुताबिक, 2021-22 के दौरान इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में घरेलू गैस का एक भी सिलेंडर नहीं भराने वाले गैर पीएमयूवाई ग्राहकों की तादाद 2.80 करोड़ रही, जबकि इस अवधि में कम्पनी के 62.10 लाख गैर पीएमयूवाई ग्राहकों ने केवल एक सिलेंडर भराया। 

आरटीआई के तहत गौड़ को मिले ब्योरे से पता चलता है कि 2021-22 में हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के गैर पीएमयूवाई ग्राहकों की श्रेणी में 49.44 लाख लोगों ने घरेलू गैस का एक भी सिलेंडर नहीं भराया, जबकि 33.58 लाख व्यक्तियों ने महज एक सिलेंडर भराया। इसी तरह, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन में 2021-22 के दौरान घरेलू गैस के 30.10 लाख गैर पीएमयूवाई ग्राहकों ने एक भी सिलेंडर नहीं भराया, जबकि इस श्रेणी के 24.62 लाख ग्राहक ऐसे थे जिन्होंने साल भर में सिर्फ एक सिलेंडर भराया। 
 
अर्थशास्त्री जयंतीलाल भंडारी ने इन आंकड़ों की रोशनी में कहा, 'रसोई गैस की बढ़ती महंगाई से आम लोग परेशान हैं। लिहाजा हो सकता है कि खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कई गरीब लोग लकड़ी, उपलों और कोयले सरीखे सस्ते पारम्परिक ईंधनों की ओर लौट गए हों।' उन्होंने यह भी कहा कि शहरी क्षेत्रों में पाइपलाइन के जरिये घरों तक रसोई गैस की आपूर्ति से सिलेंडरों पर लोगों की निर्भरता घटी है। 

इंदौर के एक डीलर ने बताया कि चार सदस्यों वाला कोई परिवार आमतौर पर साल भर में घरेलू गैस के आठ से 12 सिलेंडर भराता है। हालांकि, यह आंकड़ा देश भर के परिवारों पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि सिलेंडरों की सालाना खपत परिवारों की आर्थिक स्थिति और स्थानीय मौसमी हालात के मुताबिक अलग-अलग हो सकती है।  

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