155 साल बाद बदलाव की आहट, संसद में पेश होगा ‘प्रेस एवं पत्रिका पंजीकरण विधेयक'

डिजिटल मीडिया को भी कानून के दायरे में लाने की योजना


प्रतीकात्मक चित्र

नई दिल्ली। केंद्र 155 साल पुराने ‘प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण कानून' के स्थान पर एक सरल संस्करण वाले ऐसे विधेयक को पेश करने की योजना बना रहा है जो विभिन्न मौजूदा कानून के प्रावधानों को अपराध के दायरे से बाहर करता है और डिजिटल मीडिया को भी कानून के दायरे में लाता है। सरकार की सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में ‘प्रेस एवं पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2022' पेश करने की योजना है।

संसद को भेजे गए सरकारी संवाद में कहा गया है, ‘यह विधेयक ‘प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण (पीआरबी) अधिनियम, 1867' के कानून का गैर अपराधीकरण करके उसे प्रतिस्थापित करता है। यह मौजूदा कानून की प्रक्रियाओं को मध्य/लघु प्रकाशकों के नजरिए से सरल बनाता है और प्रेस की स्वतंत्रता के मूल्यों को बरकरार रखता है।' 

सरकार ने सबसे पहले 2017 में प्रेस एवं पत्रिका पंजीकरण विधेयक का मसौदा जारी किया था, जिसमें समाचार पत्रों के पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाने और पीआरबी अधिनियम के तहत दंडात्मक प्रावधानों को समाप्त करने की बात की गई है।

पीआरबी अधिनियम में प्रकाशकों पर अखबार या पत्रिका में मुद्रक का नाम नहीं छापने या प्रिंटिंग प्रेस के संचालन के बारे में मजिस्ट्रेट के सामने घोषणा नहीं करने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। प्रस्तावित विधेयक में एक प्रेस महापंजीयक बनाने और डिजिटल मीडिया को इसके दायरे में लाने का प्रावधान है।

2019 के मसौदा विधेयक में ‘डिजिटल मीडिया पर समाचार' को ‘इंटरनेट, कंप्यूटर, मोबाइल नेटवर्क पर प्रसारित किए जा सकने वाले समाचार के ऐसे डिजिटल प्रारूप के रूप में' परिभाषित किया गया है, ‘जिसमें पढ़ना, देखना, दृश्य और ग्राफिक्स शामिल हैं।' 

विधेयक में केंद्र सरकार और राज्य सरकार को समाचार पत्रों में सरकारी विज्ञापन जारी करने, समाचार पत्रों को मान्यता देने और समाचार पत्रों के लिए इस तरह की सुविधाओं के मानदंड या शर्तों को नियमित करने के लिए उपयुक्त नियम बनाने में सक्षम बनाने की बात की गई थी। 

विधेयक ई-पेपर के पंजीकरण की सरल प्रणाली और पीआरबी अधिनियम, 1867 के तहत पहले के उन प्रावधान को हटाने का भी प्रस्ताव रखता है, जो प्रकाशकों के खिलाफ मुकदमा चलाने से संबंधित है।

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