जबलपुर में वुडन टॉयज इंडस्ट्री की अच्छी संभावनाएं : प्रेम दुबे


  • स्टार्टअप से प्रारंभ करें, जबलपुर चेंबर की अपील
  • भारतीय खिलौना निर्माता और भारतीय खिलौनों की बढ़ती वैश्विक मांग
  • भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) खिलौना निर्माण की लगभग 8,366 कंपनियां पंजीकृत
प्रेम दुबे

जबलपुर। जबलपुर में वुडन टॉयज इंडस्ट्री की अच्छी संभावनाएं मौजूद हैं। भारत में खिलौना उद्योग में विकास की तेज रफ़्तार पकड़ सकता है। खिलौना निर्माण के परिणामस्वरूप आलीशान, दस्तकारी और नवीन इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों ने दुनिया के बाजारों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। मध्यवर्गीय भारतीयों की बढ़ी हुई क्रय शक्ति के उदय के कारण आर्थिक विकास के साथ-साथ नए-नए उपभोक्ता भी बढ़े हैं। खिलौनों की बढ़ती मांग और एक मजबूत अर्थव्यवस्था ने भारत में खिलौना निर्माण उद्योग की अपार संभावनाएं दी हैं।

खिलौना निर्माण के विभिन्न पहलू
इलेक्ट्रॉनिक और रिमोट-कंट्रोल खिलौनों के निर्माण के लिए सटीक उपकरण पर तकनीकी जानकारी की आवश्यकता होती है। लगभग 20% से 40% श्रम लागत भारत में एक खिलौना कारखाने में कुल लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
खिलौने बनाने के लिए आवश्यक पॉलिएस्टर और संबंधित फाइबर के उत्पादन में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है।कुछ दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में उत्पादकता की वृद्धि दर अधिक होने के कारण, यह भारतीय खिलौना कंपनियों में कारीगरों और शिल्पकारों के साथ जुड़ जाता है। पारंपरिक खिलौने संस्कृति का प्रतिबिंब हैं और श्रम-उन्मुख उद्योग में महत्वपूर्ण हैं जो समुदायों में मौजूद मान्यताओं और परंपराओं को प्रदर्शित करते हैं।

100 बिलियन डॉलर का वैश्विक खिलौना बाजार
वैश्विक खिलौना बाजार करीब 100 बिलियन डॉलर का है। इसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ डेढ़ मिलियन डॉलर के आसपास की ही है। आज हम अपनी आवश्यकता के लगभग 80 फीसदी खिलौने आयात करते हैं। भारत में खिलौना बाजार तकरीबन 16 हजार करोड़ रुपए का है, जिसमें 25 फीसदी ही स्वदेशी हैं, जबकि बाकी खिलौने विदेशी हैं।

बाजार में मुख्य रूप से दो तरह के खिलौने दिखते हैं। कुछ खिलौने ऐसे होते हैं, जो बच्चों की मौज-मस्ती का जरिया बनकर उन्हें खुशी देते हैं। वहीं दूसरी किस्म के खिलौने बच्चों को खुश करने के साथ ही उनके मानसिक विकास में भी उपयोगी होते हैं। फिलहाल बाजार में लकड़ी, पत्थर, मिट्टी, प्लास्टिक और दूसरी कृत्रिम चीजों से बने परंपरागत खिलौनों के अलावा नई तकनीक की रंग-बिरंगी गुड़ियों से लेकर मैकेनिकल सेट, डिजाइनर बोर्ड गेम्स, लिगो, पजल्स, कंप्यूटर गेम्स, डॉल हाउस, स्टफ्ड एनिमल्स, रोबोट और रिमोट कंट्रोल से चलने वाले खिलौने मुख्य रूप से प्रचलित हैं।

खिलौनों के मोर्चे पर आत्मनिर्भरता और उनके आयात पर व्यय हो रही विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए सरकार रणनीतिक रूप से आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। इसीलिए उसने खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख प्राथमिकता वाले सेक्टरों में स्थान दिया है। 

कोरोना संकट की चुनौतियों के बीच सरकार ने वोकल फॉर लोकल व आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत खिलौना उद्योग को आगे बढ़ाने तथा खिलौना बाजार से चीनी खिलौनों को हटाने की रणनीति बनाई। केंद्र के अलावा कई राज्य सरकारों द्वारा भी स्थानीय खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए फरवरी 2020 में खिलौनों पर आयात शुल्क में 200 फीसद की बढ़ोतरी की गई है। इसके अलावा 1 सितंबर 2020 से आयातित खिलौनों के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैडर्ड के मापदंड भी लागू कर दिए गए हैं। न्यूनतम क्वालिटी कंट्रोल नियम और वर्ष 2021-22 के बजट में मेक इन इंडिया अभियान को मिले प्रोत्साहन से भी स्वदेशी खिलौना उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा।

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